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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir रसप्रकरणम् ] द्वितीयो भागः। [३०७] ( नोट—यह रस विरेचक है । गर्भिणीको | वातज ज्वर, पित्तज ज्वर, कफज ज्वर, सन्निपात, न देना चाहिए ।) विषमज्वर, धातुगत विषमज्वर, प्लीहा, यकृत् , (२१७५) ज्वरार्यगदः ( र. का.धे. । अ.१) गुल्म, अग्रमांस, शोथ, हिचकी, श्वास, खांसी, विषद्वयश्च नैपालं तुत्थकोषणसादरम् । अग्निमांद्य और अरुचि अवश्य नष्ट हो जाती है । स्वर्जीक्षारसमायुक्तमगदोऽयं ज्वरशल्यजित् ॥ (२१७७) ज्वराशनिरसः शुद्ध बछनाग १ भाग, जमाल गोटा, तुत्थ, (र. सा. सं.; भै. र.; र. चं.; धन्व. । ज्वर.) मरिच, नौसादर और सज्जीक्षार १-१ भाग लेकर रसं गन्धं सैन्धवश्च विषं तानं समांशिकम् । खरल करके रखिए। सर्वचूर्णसमं लौह तत्समं शुद्धमभ्रकम् ॥ इसके सेवनसे ज्वर नष्ट होता है । ( मात्रा लौहे च लौहदण्डेन निर्गुण्डीस्वरसेन च । २ रत्ती । अनुपान अद्रकका रस, या शहद । ) मर्दयेद्यत्नतःपश्चान्मरिचं मूततुल्यकम् ॥ (२१७६) ज्वरार्यभ्रम् । नागवल्ल्या दलेनैव दातव्यो रक्तिसम्मितः। (र. चं.; र. सा.सं.; र. रा. सुं.; भै. र. । ज्व.) सर्वज्वरहर श्रेष्ठो ज्वरान्हन्ति सुदारुणान् ॥ अभं तानं रसं गन्धं विषञ्चैव समं समम् । कासं श्वासं महाघोरं विषमाख्यं ज्वरं वमिम्। द्विगुणं धुर्तवीजश्च व्योषं पञ्चगुणं मतम् ॥ धातुस्थं परमं दाहं ज्वरं दोषत्रयोद्भवम् । आईकस्य रसेनैव वटी कार्या द्विगुञ्जिका। पारा, गन्धक, सेंधा, बछनाग और ताम्र अनुपानं प्रयोक्तव्यं यथादोषानुसारतः ॥ भस्म १-१ भाग, लोह भस्म ५ भाग और अभ्रक अभ्रं ज्वरारिनामेदं सर्वज्वरविनाशनम् । भस्म १० भाग लेकर प्रथम पारे गन्धक की वातिकं पैत्तिकञ्चैव श्लैष्मिकं सानिपातिकम् ।। कजली बना लीजिए तत्पश्चात् अन्य ओषधियोंका विषमाख्यां ज्वरान्सर्वान्धातुस्थान्विषमज्वरान् महीन चूर्ण मिलाकर लोहेके खरलमें लोहे की प्लीहानं यकृतं गुल्ममग्रमांसं सशोथकम् ॥ मूसलीसे संभालके रसमें घोटकर उसमें १ भाग हिक्कां श्वासं च कासश्च मन्दानलमरोचकम् ।। | कृष्णमरिचका चूर्ण मिलाकर १-१ रत्ती की ' गोलियां बना लीजिए। नाशयेन्नात्र सन्देहो वृक्षमिन्द्राशनिर्यथा॥ इनमेंसे एक एक गोली पानमें रखकर देनेसे ___अभ्रक भस्म, ताम्र भस्म, पारा, गन्धक और । सर्व प्रकारके ज्वर, विशेषतः विषमज्वर, खांसी, बछंनाग एक एक भाग तथा धतूरेके बीज २ भाग श्वास, वमन और दाहयुक्त धातुगत ज्वर नष्ट और त्रिकुटा ५ भाग लेकर प्रथम पारे गन्धककी | होता है। कजली बना लीजिए, तत्पश्चात् अन्य औषधोंका। । (२१७८) ज्वरभसिंहो रसः महीन चूर्ण मिलाकर अद्रकके रसमें घोटकर २-२ (रस. का. धे. । अधि. १) रत्तीकी गोलियां बना लीजिए। पारदं मरिचं शोषं शङ्खभस्म विषं समम् । इन्हें यथोचित अनुपानके साथ सेवन करनेसे जयपालं तथा गन्धं त्रिभागं मर्दयेद् दिनम् ।। For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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