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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir 'रसप्रकरणम् ] द्वितीयो भागः। [२०७] अब यह जारितपारद १ पल (५ तोले ) सेवन करनेसे राजाओंका स्वास्थ्य स्थिर रहता है। और शुद्ध गन्धक १ पल लेकर खूब चिक्कण | इसकी एक मात्रा सेवन करनेसे ३ बार भूख कजली तैयार कीजिए। फिर एक लोहे की लगती है। . कढ़ाई में घी चुपड़कर उसमें यह कजली डालकर मन्दाग्नि पर पिघलाइये और उसमें २ पल अभ्रक इसके सेवन कालमें केवल मूली न खानी सत्व की भस्म मिलाकर यथाविधि *पर्पटी बना | चाहिए, अन्य किसी प्रकारके परहेजकी आवश्यक्ता लीजिए। | नहीं है। अब इस पर्पटीको पीस कर इसमें तीसवां १८८५) चन्द्रकलारसः भाग वैक्रान्त भस्म मिलाकर उसे हींगके पानीकी । (वृ. नि. र. । मूत्रकृ.-दा.; र. र. स. । उ. खं. १०० भावनाएं दीजिए । और फिर उसे मल्ल | अ. १३; यो. र. । दाह; र. चं. । र. पि.; मूषा में बन्द करके स्वेदन कीजिए, और स्वांग र. रा. सुं. । दाह.) शीतल होने पर निकाल कर पीस कर शीशीमें प्रत्येक तोलमादाय सतं तानं तथाभ्रकम् । भर लीजिए । इसका नाम “चतु:सुधा" रस है। द्विगुणं गन्धकश्चैव कृत्वा कजलिकां शुभाम् ॥ इसके सेवनसे वायु के समस्त रोग, क्षय, | मुस्तादाडिमर्वोत्थैः केतकीस्तनजवैः। पाण्डु, अग्निमांध, वीर्यहीनता, अरुचि, बदहजमी, सहदेव्या कुमार्याश्च पर्पटस्थापि वारिणा । शूल, गुल्म, आठों महा व्याधियां, और शोष रोग | रामशीतलिकातोयैः शतावर्यारसेन च । नष्ट होता है। इसे मंगके बराबर मात्रानुसार | भावयित्वा प्रयत्नेन दिवसे दिवसे पृथक् ॥ ____* साफ़ ज़मीन पर गाय का गोबर. ४-५ अंगुल मोटा फैलाकर उस पर केलेका पत्ता फैला दीजिए और फिर उस पर पिघली हुई कजली डालकर उसके ऊपर दूसरा पत्ता रख कर उसे गोचरसे दबा दीजिए । जग देर बाद गोबर को हटा दीजिए, तो पर्पटी तैयार मिलेगी। अथवा थोड़े कड़े गोबर को केलेके पत्ते में लपेट कर गोल बेलन सा बना लीजिए और उससे उस पिघली हुई कजली को फुरती के साथ रोटी बेलनेकी भांति बेल दीजिए। १ रस रत्न समुच्चयमें इस प्रथम श्लोकके स्थानमें निम्न पाठ है-- प्रत्येकं तोलमानेन सूतकं ताम्रभस्मकम् । दिनानि त्रीणि गुटिकां कृत्वा चानौ विनिक्षिपेत् ॥ ततःशुष्कं समादाय पुनरेव च मईयेत् । समस्तैः समगन्धैश्च कृत्वा कज्जलिकाञ्च तैः ।। For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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