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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org द्वितीयो भागः । लेपप्रकरणम् ] (१८२२) चतुरङ्गलवर्णादिलेपः ( ग. नि.; वृं. मा. । कु. ) पर्णानि पिष्ट्वा चतुरङ्गुलस्थ तक्रेण पर्णान्यथ काकमाच्याः । तैलाक्तगात्रस्य नरस्य कुष्ठान्युद्वर्त्तयेदश्वरिपुच्छदैश्च ॥ रोगी के शरीरको तैलकी मालिश करानेके पश्चात् अमलतास, मकोय या कनेर के पत्तों को तक्रमें पीसकर मालिश करनेसे कुष्ट रोग नष्ट होता है। (१७२३) चन्दनादिप्रलेपः (वं. से. । विष. ) चन्दनं पद्मकं कुठं नतं चोशीरपाटले । निर्गुण्डी शारिवा शैलुः लूताविषहरोऽगदः ॥ लाल चन्दन, पद्माक, कूठ, तगर, खस, पाढलकी छाल, संभालु, सारिवा और हिसौड़े (रीठे) की छाल समान भाग लेकर ( पानी, घी या सिरसकी छालके रस में ) पीसकर लेप करने से मकड़ीका विष नष्ट होता है । (१८२४) चन्दनादिलेपः ( वृ. नि. र.; वं. से.; यो. र. ग. नि.; वृं. मा. । शिरो.; शा. ध. । अ. ११ ) चन्दनोशीरयष्ट्याह्नबलाव्याघ्रनखोत्पलैः । क्षीरपिः प्रदेहः स्वात्तैर्वा परिषेचनम् ॥ पित्तज शिरो रोग में लाल चन्दन, खस, मुलैठी, खरैंटी, नखी और नीलोत्पल (नीलोफर ) को दूधमें पीसकर लेप करना चाहिए और इनके जलकी धारा शिरपर डालनी चाहिए । | Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir For Private And Personal [ १८७ ] (१८२५) चन्दनादिलेपः ( भा. प्र. खं २; वृ. नि. र. वं. से .; यो. र.; वृं. मा.; ग. नि.; । विस्फो; यो त । त. ६६ ) चन्दनं नागपुष्पञ्च तण्डुलीयकशारिका । शिरीषवल्कलं पत्र' लेपः स्याद्दाहनाशनः । लाल चन्दन, नागकेसर, चौला इकी जड़, सारिवा, सिरसकी छाल और सिरस के पत्तों को पीसकर लेप करनेसे विस्फोटककी दाह शान्त होती है । (१८२६) चन्दनादिलेपः ( वृ. नि. र.; वृं. मा. । वृद्धच.; यो. त. । त. ५६ ) चन्दनं मधुकं पद्ममुशीरं नीलमुत्पलम् । क्षीरपिष्टः प्रलेपः स्यात्पित्तवृद्धिरुजापहः ।। लाल चन्दन, मुलैठी, कमलपुष्प, खस और नीलोफरको दूध में पीसकर लेप करनेसे पित्तज वृद्धि नष्ट होती है । (१८२७) चन्दनादिलेपः ( वृ. नि. र. यो. र. ग. नि. । तृष्णा; यो. त. । त. ३४ ) अरुणचन्दनचन्दनवालकै लदपद्मकतुल्यकृतांशकैः । शिरसि लेपनमाचरतां नृणां तृडुपयात्युपशान्तिमसंशयम् ॥ लाल चन्दन, सफेद चन्दन, नेत्रबाला, नलद और गद्माक समान भाग लेकर पीसकर शिरपर लेप करनेसे पिपासा अवश्य शान्त हो जाती है । (१८२८) चन्दनादिलेप: (वृ.नि.र.;वं.से. (नेत्र.) चन्दनं मधुकं लोघं जातिपत्राणि गैरिकम् । प्रलेपो दाहरोगघ्नस्तोदाभिष्यन्दनाशनः ॥ १ जातीति पाठान्तरम् ।
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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