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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir १४०] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [ चकारादि धनिया और सुगन्धबाला समान भाग लेकर काथ | (१६८६) चित्रकादिवाथः करके उसमें हींग, सेंधानमक और खारी नमक (वृ. नि. र.; वं. से. । अति.) मिलाकर पीनेसे आमशूल नष्ट होता है। चित्रकं पिप्पलीमूलं वचा कटुकरोहिणी । (१६८३) चित्रकादिक्काथः पाठा वत्सकबीजानि हरीतक्यो महौषधम् ।। (घ. नि. र.; वं. से.; यो. र.; ग. नि. । नेत्र.; एतदामसमुत्थानमतिसारं सवेदनम् । वृ. यो. त. । त. १३१) कफात्मकं सपित्तश्च सवातं हन्ति वै ध्रुवम् ॥ चित्रकमूलत्रिफलापटोलयवसाधितं पिबेदम्भः। चीता, पीपलामूल, बच, कुटकी, पाठा, सघृतं निशि चक्षुष्यं तिमिरं च विशेषतो हन्ति ॥ इन्द्रजौ, हर्र और सोंठ का क्वाथ आमातिसार, चीतेकी जड़, त्रिफला (हर्र, बहेड़ा, आमला) वेदनायुक्त कफातिसार, पित्तातिसार, और वातापटोलपत्र और इन्द्रजौके काथमें घृत मिलाकर तिसारका अवश्य नाश करता है। रात्रिके समय पीना नेत्रों के लिए हितकर और (१६८७) चित्रकादिप्रयोगः (मुं.सं.चि.अ.६) विशेषतः तिमिररोगनाशक है। चित्रकमूलं क्षारोदकसिद्धं वा पयः (१६८४) चित्रकादिकाथ: अर्शरोगमें चीते की जड़ और क्षारोदक' (वृ. नि. र.; यो. र; वं. से. । अ. पि.; से सिद्ध दृध पिलाना भी हितकर है। . वृ. यो. त. । त. १२२) (१६८८) चोपचीनीप्रयोगः चित्रकैरण्डमूलानि यवाश्च सयवासकाः। (यो. चि. म. । मिश्रा. अ. ९) जलेन कथितं पिन कोटदाहाम्लपित्तजित ॥ चोपचीनी समुत्काथ्य त्रिशाणं पिवतःसदा। चीता, अरण्डकी जड, इन्द्रजौ और जवासे सर्ववातव्यथा यान्ति पथ्यनिर्वातसेवितः॥ का काथ पित्त, कोष्ठदाह, और अम्लपित्तका नाश अथवा मधुना साई सकणा लेहि वातकी। करता है। अथवा शर्करायुक्तं चूर्णमस्याःसमीरजित् ॥ (१६८५) चित्रकादिवाथः १ तोला चोपचीनीके काथको नित्य प्रति (वृ. नि. र.; वं. से.; अति०) सेवन करने अथवा चोपचीनी और पीपलके सम भाग मिश्रित चूर्णको शहदमें मिलाकर चाटने, या चित्रकातिविषामुस्तं बला बिल्लं सनागरम् । चोपचीनीके चूर्ण में मिश्री मिलाकर सेवन करने वत्सकत्वक्फलं पथ्या वातश्लेष्मातिसारनुत् ॥ और पथ्य पालनपूर्वक निर्वात स्थानमें रहनेसे चीता, अतीस, मोथा, खरैटी, बेलगिरो, | समस्त वातजरोग नष्ट होते हैं । सोंठ, कुडेकी छाल, इन्द्रजौ, और हर्रका काथ । । ॥ इति चकारादिकषायप्रकरणम् ॥ वातकफज अतिसारका नाश करता है। १ (११४ पृष्ठ देखिए) For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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