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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मिश्रकरणम् ] परिशिष्ट ६२५ - तरह कूटकर रस निकालें और उसे धूप में | कसेरु और मुलैठीके चूर्णको एकत्र मिलाकर सुखाकर पीस लें। कपड़ेमें बांध कर पोटली बनावें । इसे बकरीके दूध ___ इसमें से ८ माशे रस खाकर ऊपरसे ३ काली | और घी में भिगोकर आंखमें निचोडनेसे पित्तज मिर्च खालें तो उससे ३ दस्त आ जाएंगे। यदि | और रक्तज नेत्राभिष्यन्द रोग नष्ट होता है । ४ मिर्च खाई जायंगी तो ४, और ५ खाई जायंगी (९५४६) कसे दिक्षीरम् तो ५ दस्त होंगे। (९५४४) कलहंसकाञ्जी (वृ. मा. । स्त्रीरोगा. ; व. से. । स्त्रीरोगा. ; यो. त. । त. ७५ ) (व. से. ; मै. र. ; र. र. ; च. द. । अरोचका.) अष्टादशशिग्रुफलानि दश कसेरुशृङ्गाटकजीवनीयैः मरिचानि विंशतिपिप्पल्यः । ___ पोत्पलैरण्डशतावरी मिः। आर्द्रकपलं गुडपलं प्रस्थत्रयमारनालस्य ॥ सिद्धं पयः शर्फरया विमिश्रं विडलवणसहितमेतत् संस्थापयेद्गर्भमुदीर्णशूलम् ॥ खमाहतं सुरभिगन्धाढयम्। कसेरु, सिंघाड़ा, जीवनीय गण (प्र. सं. व्यानसहस्रघातिज्ञेयं कलहंसकं नाम्ना ॥ १९८२), कमल, नीलोत्पल, अरण्डमूल और सहजनेकी फली १८, काली मिर्च १०, | शतावर समान भाग मिलित २ तोले, दूध ३२ पीपल २०, अदरक ५ तोले, गुड़ ५ तोले और तोले और पानी १२८ तोले लेकर सबको एकत्र आरनाल (काजी) ३ सेर (६ सेर ) लेकर | मिलाकर पकावें । जब पानी जल जाय तो कूटने योग्य चीजोंको कूटकर सबको एकत्र मिलावें | दूधको छान लें। और उसमें स्वाद योग्य विड नमक मिलाकर इसमें खांड मिलाकर पीनेसे गर्भशूल नष्ट मथनीसे मथें । अन्तमें उसे दालचीनी, इलायची | होता और गिरता हवा गर्भ रुक जाता है। तेजपात और मागकेसरके चूर्णसे सुगन्धित कर लें। यह कांजी अत्यन्त रुचिवर्द्धक है। (९५४७) काकजङ्घामूलबन्धनम् (९५४५) कशेरुकादियोगः . ( रा. मा. । ज्वरा. २०) (व. से. । नेऋोगा.; ग. नि.'; वृ.मा. । नेत्ररो.) यः सततमेव निद्रापरिघूर्णितलोचनो दिवाराची कशेरुमधुकामाश्च चूर्णमम्बरसंभृतम् । वायसजङ्घामूलं मूर्ति तदोये निवनीयात् ॥ छागीक्षीरे घृते सेकः पित्तरक्ताभिघातजित् ।। यदि ज्वर के रोगी की आंखोंमें दिन रात १ ग. नि. और वृ. मा. में पोटली को निद्रा भरी रहती हो तो उसके शिर पर काकजंघाकी बरसात के पोनीमें भिगोनेको लिखा है। जड़ बांधनी चाहिये । For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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