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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६२२ - - भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [ ककारादि अथ ककारादिमिश्रप्रकरणम् (९५३०) ककुभत्वचादियोगः वस्त्रवर्ति बुधस्तेन समालिप्य समन्ततः । (बृ. मा. । राजयक्ष्मा.) गुदे विनिःक्षिपेयत्नात् प्रातः सायं च बुद्धिमान् घेदना च भवेत्तीवा वहिना स्वेदयेद्गुदम् । ककुभत्वङ्नागबलावानरि नोपशाम्येधदा सेन तदा चैबोष्णपारिणि ॥ बीजानि चूर्णितं पयसि । विनिवेश्य गुदं तिष्ठेद्वेदनाशमकारणात् । पक्वं मधुघृतयुक्तं ससितं यक्ष्मादिकासहरम् || अघावष्यमथानं च शिशिरं जलमापिषेत् ॥ ___ अर्जुनकी छाल, नागबला ( गंगेरन ) और गुदजानां विनाशाय सप्ताहं तु समाहितः । कौंचके बीज समान भाग लेकर चूर्ण बनावें तथा विधिमेन प्रकुर्वीत गतशङ्कस्तु मानवः ॥ उसे दूध में पकाकर उसमें शहद, घी और खांड कड़वी तूंबी का चूर्ण, दन्तीमूलका चूर्ण, मिलाकर सेवन करें। मुरगेकी विष्ठा, मूसली, असगन्ध और चीतामूल; इसके सेवन से राजयक्ष्मा और कासादि का | इनके समान भाग मिलित चूर्णको आकके या स्नुही नाश होता है। (सेहुंड-थूहर) के दूधकी भावना दें। तदनन्तर (९५३१) कोणीमूलयोगः उसे पानीके साथ बारीक पीस कर उसमें कपड़ेकी (ग. नि. । नाडीव्रणा. ७) बत्ती भिगो कर अर्श वाले रोगीकी गुदामें लगा दें। या कहुणीमूलसमीपकाण्ड जब तीब्र वेदना हो तो गुदाको अग्निसे सेकें। मन्नाति नित्यं पुरुषोऽभियुक्तः। यदि इससे पीड़ा शान्त न हो तो रोगीको गरम नाडीव्रणो रोहति तस्य पानी में बिठलावें। शीघ्रमनारतप्रसुतसान्द्रपूयः ।। ___ इस प्रकार प्रातः सायं १ सप्ताह तक उपचार करनेसे अर्शरोग अवश्य नष्ट हो जाता है, इसमें नित्य प्रति मालकंगनी की जड़के समीपका | सन्देह न करना चाहिये। कांड खानेसे वह नाड़ी ब्रण कि जिससे गाढ़ा गाढ़ा । इस प्रयोगके दिनों में वृष्य अन्न खाना और पीप निकलता हो शीघ्र नष्ट हो जाता है । शीतल जल पीना चाहिये । (९५३२) कटुतुम्याचा वतिः (९५३३) कटवलान्याचा वतिः (ग. नि. । अशों. ४) (रा. मा. । अर्शों. १८) कद्धतुम्यास्तथा दन्त्याः शकृतः कुक्कुटस्य च ।। कटवलासुरनाथवारुणी मुशस्याश्चाश्वगन्धायाचित्रकस्य च यवतः ॥ जालिनीफलरजोगुडैः कृता । मस्तुल्यैः कृतं चूर्णमर्कक्षीरेण भावयेत् । पर्तिराशु विनिहन्तिदेहिनां स्नुहीक्षीरेण वा सम्यग्बारिणा परिपेषयेत् ॥ पायुमध्यनिहिताऽशंसां चयम् ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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