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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकारादि-गुटिका (४१) - - लवणत्रयश्च तत्रैव पलमेकं तु निक्षिपेत् । । [१३१] अष्टादशांगगुटिका अक्षप्रमाणवटकान्कुर्यादेवं पृथक् पृथक् ॥ (वं. से. पां. चि.) त्रिंशदिनानि मतिमान प्नं दीपनं परम् । - किराततिक्तं सुरदारु दार्वी, घृततक्रसमायुक्तं भोजनं सम्प्रदापयेत् ।। -- मुस्ता गुडूची कटुका पटोलम् । पीपल, पीपलामूल, वनसूरण, चीता, मरिच, दुरालभा पर्पटकं सनिम्ब, कटेली, लाल सांठी की जड़। प्रत्येक ५-५ तोला कटुत्रिकं वापि फलत्रिकश्च ॥ इन सबके कल्कको हाथी और बकरीके मूत्रमें विडंगसारश्च समांशकानि, मिट्टीके बरतनमें मन्दाग्नि पर पकावें । जब मूत्र । सर्वैः समं चूर्णमथात्रलौहम् ।। जल जाय और केवल चूर्ण बाकी रहे तो उसमें त्रिलवण (सेंधा, सौंचल और सांभर) ५ तोला सर्पिमधुभ्यां गुटिका विधया, मिलाकर १।-१। तोला के वटक बनावे और एक तक्रानुपानं भिषा प्रयोज्यम् ॥ मास तक सेवन करे तो बवासीर और मन्दाग्निका निहन्ति पाण्डु श्वयधुं प्रमेहं नाश हो । व्यवहारिक मात्राः-३ माशा । इस पर हलीमकं हृद्ग्रहणीप्रदोषम् । घृत और तक्रयुक्त आहार पथ्य है। श्वासञ्च कासश्च सरक्तपित्त[१३०] अष्टांगलवणवटिका मास्यथोवाग्रहमामवातम् । .. (च. सं. चिं. अ. २५) व्रणान्सकुष्ठान् कफविद्रधींश्च, सौवर्चलमजाजी च वृक्षाम् साम्लवेतसम् । श्वित्राणि कुष्ठं सततप्रयोगात् ॥ स्वगेला मरिचार्भाशं शर्कराभागयोजितम् ॥ । चिरायता, देवदार, दारु हल्दी, नागरमोथा, एतल्लवणमष्टांगमग्निसंदीपनं परम् । गिलोय, कुटकी, पटोलपत्र, धमासा, पित्तपापड़ा, मदात्यये कफनाये दद्यात्स्रोतो विशोधनम् ॥ नीम की छाल, त्रिकुटा. त्रिफला और वायविडंग सब सौंचल, जीरा, वृक्षाम्ल (इमली), अम्लवेत, समान भाग, सबके बराबर लोह भस्म । इन सबका दालचीनी, इलायची और मरिच, प्रत्येक आधा महीन चूर्ण करके पी और शहदमें मिला कर भाग, शकर (चीनी) १ भाग । यह अष्टांग लवण गोलियां बनावे । इन्हें छाछके साथ सेवन करनेसे अत्यन्त अग्नि सन्दीपक और कफ प्रधान मदात्यय पाण्डु, शोथ, प्रमेह, हलीमक, हृद्रोग, ग्रहणी, श्वास, नाशक तथा स्रोत शोधक है। मात्रा-२ माशा. खांसी, रक्तपित्त, अर्श. उरुग्रह, आमवात, व्रण, ____इन सब को पानी में पीसकर गोलियां कुष्ट, कफ विद्रधी और श्वेत कुष्टका नाश होता बना लेनी चाहिये। है। मात्रा-२ से ४ रनी। For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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