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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org भारत-भैन्य- रत्नाकर (४०) लौह कांस्यं प्रदव्यं कर्षमात्रं भिषग्विदा । अन्यत्सर्वं कर्षमात्रं कर्षाद्धं स्वर्ण भस्मकम् ॥ चतुर्थी तु विधानेन मारितं ग्राहयेत्सुधीः । अम्लपित्तान्तको ह्येष मोदको मुनिभावितः ॥ वान्ति मूर्च्छाश्च दाहश्च कासं श्वासं भ्रमं तथा । वातजं पित्तञ्चैव कफजे सान्निपातिकम् ॥ सर्वरोगं निहन्त्याशु प्रमेहं सूतिकागदम् । शूलञ्च वह्निमांद्यञ्च मूत्रकृच्छं गलग्रहम् ॥ सोंठ, पीपल, सुपारी प्रत्येक आधा सेर, दूध, घी प्रत्येक २ सेर, लौंग, केशर, कूठ, अजवायन, काली जीरी, वच, सफेद चन्दन, मुलैठी, रास्ना, देवदारु, त्रिफला, तेजपात, इलायची, दालचीनी, सेंधा नमक, हाऊबेर, कपूर कचरी, मैनफल, कायफल, जटामांसी, अभ्रक, बंग तथा चांदी भस्म, तालीश पत्र, पद्माख, मूर्वा, मजीठ, बंसलोचन, पीपलामूल, सोया, शतावर, कुरण्टा, जायफल, जावत्री, ककोल, नागरमोथा, पीपल, कपूर, बायबिड़ंग, अजमोद (अजवायन ) बला, गिलोय, कौंच के बीज, तालमखाना, चन्दन, देवताड़ (देवदाली), लोहभस्म, कांसी भस्म, प्रत्येक १। तोला, सोना भस्म ६० रत्ती । सब को एकत्र कर विधिवत् मोदक बनावे । गुण---ये मोदक बमन, मूर्छा, दाह, खांसी, श्वास, भ्रम, प्रमेह, सूतिका रोग, शूल, अग्निमांद्य, मूत्रकृच्छ्र, गलग्रह और अम्लपित्तादि को आराम करते हैं । * [१२७] अर्जकादि वटिका (भै. र.वी. स्तं . ) मूलमर्जकशङ्खिन्योनिर्गुण्डीकेशराजयोः । जातीफलं देवपुष्पं विडङ्गं राजपिप्पलीम् ॥ * इस प्रयोग में पहिले घी को कढाई में चढावे गरम होने पर उसमें दूध और अन्य चीजें का चूर्ण मिलाकर पाक सिद्ध करना चाहिये । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चातुर्जातं तुगाक्षीरीमनन्तां मुपलीं क्षीरीम् । विदारीं गोक्षुरं बीजञ्चाभातोयेन मर्दयेत् ॥ मापमानां वटीं कृत्वा सुरामण्डेन योजयेत् । वीर्य्यस्तम्भकरी वृष्या वटिकेयं प्रकीर्तिता ॥ सफेद तुलसी की जड, शङ्खपुष्पी की जड, निर्गुण्डी, भांगरे की जड, जायफल, लौंग, बायबिडंग, गजपीपल, चातुर्जात, बंसलोचन, अनन्तमूल, सफेद मूसली, शतावरी विदारी कन्द्र, गोखरू, सब को कीकर की छाल के रस में खरल करके एक एक माशे की गोलियां बनावे | ये गोलियां वीर्य स्तम्भक और वृष्य हैं। अनुपान - सुरामण्ड । [१२८] अर्द्धनारीश्वरः (भै. र. शि. रो.) वराटं टङ्कनं शुद्धं पञ्चभागसमन्वितम् । नवभागं मरीचस्य विषं भागत्रयं मतम् ॥ स्तन्येन वटिकां कृत्वा नस्यं दद्याद्विचक्षणः । शिरोविकारान्विविधान्हन्ति श्लेष्मोत्तरानपि ॥ कौडी भस्म, सुहागे की स्वील प्रत्येक ५ भाग मरिच ९ भाग, मीठा तेलीया ३ भाग । स्त्री के दूध में गोली बनाकर रक्खे | इसकी नस्य देनेसे अनेक प्रकारकी शिरो वेदना शान्त होती है । [१२९] अर्शोघ्नवटक ( र. र. स. अ. १५) अर्शोघ्नं वटकं वक्ष्ये पुत्रक ! शृणु, भद्रक । पिप्पलीपिप्पलीमूलबनसूरण चित्रजम् ॥ मरिचं कण्टकारी च रक्तपुष्पी समांशकम् । पलमेकं पृथक् सर्वं श्लक्ष्णं दृपदि पेपयेत् ॥ गजाजपशुमुत्रेषु शुभे भाण्डे विनिक्षिपेत् । मृद्रग्निना पचेत्सर्व चूर्णशेषं यथा भवेत् ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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