SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 598
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लेपप्रकरणम् ] परिशिष्ट ५७६ इसका लिंग पर लेप करके १ पहरे तक वैसे । और लेप करनेसे मण्डलीक सर्पका विष शीघ्र ही ही रहने दें और फिर धोकर स्त्री समागम करें। नष्ट हो जाता है । इस प्रयोगसे अत्यन्त वीर्यस्तम्भन होता है। (९४०६) काकोदुम्बरिकायोगः यह प्रयोग नागार्जुन-कथित है। (ग. नि. । अर्शो. ४) (९४०३) काकजङ्घादिलेपः काकोदुम्बरिकायास्तु क्षीरेण परिलेपिताः । ( ग. नि. ; व. से. | निसर्पा.) गुदजा घृतपानेन निपतन्त्याशु देहिनाम् ॥ काकजडन शिरीषस्य पुष्पं श्लेष्मातकत्वनः। ____कठूमरकी जड़को दूधमें पीसकर लेप करने कृतमालस्य पत्राणि वाजिगन्धा प्रियङ्गवः ॥ और घृत पान करनेसे अर्शके मस्से शीघ्र ही प्रदेहं ककवीसपै कदुष्णं च प्रयोजयेत् ॥ | | गिर जाते हैं। काकजंघा, सिरसके फूल, लिहसोड़े की छाल, (९४०७) काश्चन्यादिलेपः छोटे अमलतासके पत्ते, असगन्धं और फूलप्रियंगु । समान भाग लेकर पानीके साथ पीस कर मन्दोष्ण | (यो. र. । गण्डमाला.) करके लेप करनेसे कफज विसर्प में लाभ होता है। जलेन पेषयेत्तुल्यं काञ्चनीचित्रकं विषम् । (९४०४) काकजनालेपः सप्ताहं लेपयेद्यस्य यदिस्याद्गण्डमालिका ।। (रा. मा. । व्रणा. २५) स्फुटन्ती नात्र सन्देहो स्फोटे लेपमिमं कुरु । दिनत्रयं वायसनविकायाः आरग्वधशिफां पिष्ट्वा सम्यक्तण्डुल वारिणा ॥ तेन नस्यपलेपाभ्यां गण्डमालां समुद्धरेत् ॥ शस्त्रप्रहारे कुरुते प्रलेपम् । अजातपूयो व्यथया विहीनः । हन्दी, चीतामूल और बछनाग समान भाग संरोहमभ्येति स तस्य शीघ्रम् ॥ लेकर पानीके साथ पीस कर लेप करमेसे सात शस्त्राघात ब्रण पर तीन दिन तक काकजंघा दिनमें गण्डमाला अवश्य फूट जाती है। जब का लेप करनेसे वह बिना पके शीघ्र ही भर जाता गण्डमाला फूट जाए तो उसपर अमलतास की जड़को है और व्यथा भी नहीं होती। चावलों के पानीमें पीसकर लेप करना चाहिये और उसीकी नस्य देनी चाहिये । ____ (९४०५) काकादनीमूलयोगः ( रा. मा. । विषा. ८ ; ग. नि. । सर्पविषा. ३) (९४०८) कान्तपाषाणादियोगः अपहरति मण्डलिविष पानेनालेपनेन वा सद्यः। (र. र. रसा. खं. । उप. ५) काकादन्यामूलं कानिकपरिपेषितं पुंसाम ॥ | कान्तपाषाणचूर्ण तु तैलमध्वाज्यसंयुतम् । चौंटलीकी जड़को कांजीमें पीसकर पिलाने | काफतुण्डीफलं सर्व सममेतत्तु कल्पयेत् ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy