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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ब्रण में लगाना चाहिये । ) (९३२२) कर्पूरसर्पिः परिशिष्ट घृतप्रकरणम् ] दुष्टव्रणप्रशमनं तथा नाडीविशोधनम् । सघ छिन्नव्रणानां च करञ्जाद्यमिहेष्यते ॥ कल्क करञ्जके पत्ते, बरने के फल, (पाठा(९३२३) कहारां घृतम् तर के अनुसार करके कोमल फल), चमेली के पत्ते, (बृ. यो. त. । . ९८; व. से. ; र. र. । गुल्मा.) पटोलपत्र, नीमके पत्ते, हल्दी, दारूहल्दी, मोम, मुलैठी, कुटकी, मजीठ, सफेद चन्दन, खस, नीलो - कडारमुत्पलं पद्मं कुमुदं मधुयष्टिका । त्पल, दो प्रकारकी सारिवा और निसोत (पाठान्तर के पक्त्वाम्बुनाथ तत्त्रवार्थ जीवनीयोपकल्कितम् ॥ अनुसार मजीठसे निसोत तक की सात चीजों के घृतं पक्त्वा नवं पीतं रक्तपित्तास्रगुल्मनुत् । स्थानमें फूल प्रियंगु, कुशकी जड़ और हिज्जल | दाहतृष्णाज्वरच्छर्दियोनिदोषहरं परम् ॥ वृक्षकी छाल; सुश्रुतके मतानुसार मजीठ आदि सातों द्रव्य भी तथा ये तीनों चीजें भी ) ११- १। तोला लेकर पानी के साथ बारीक पीस लें । २ सेर घीमें यह कल्क ( और ८ सेर पानी ) मिलाकर पानी जलने तक पकावें और फिर छान लें। यह घृत दुष्ट व्रणको नष्ट करता और नाड़ी ( नासूर ) को शुद्ध कर देता है तथा तुरन्तके छिन्न मणों में भी उपयोगी है । ( रा. मा. | व्रणा. २५) सद्यः कर्पूरस पूरितो वस्त्रयन्त्रितः ॥ शस्त्रमहारः संरोहत्यपूयः पाकवर्जितः ॥ शस्त्राघात ( चाकू, छुरी आदिके घाव ) में कपूर मिला हुवा घी भर कर वस्त्र बांध देनेसे घाव बिना पके और बिना पीप पड़े पक जाता है । ( घी ५ तोले कपूर १ तोला । ) कल्याणघृतम् (सु. सं. ) प्र. सं. ५२२१ “महाकल्याणघृत" देखिये । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कल्याणघृतम् (महा) महा कल्याण घृतम् देखिये । ५५७ लाल और सफेद रंग मिश्रित कमल, नीलोत्पल, सफेद कमल, कुमुद और मुलैठी समान भाग मिलित २ सेर लेकर सबको कूट कर १६ सेर पानी में पकावें और ४ सेर रहने पर छान लें। इस क्वाथमें १ सेर नवीन घी और "जीवनीय गण १ का १० तोले कल्क मिलाकर पकांवें और पानी जल जाने पर घीको छान लें। For Private And Personal Use Only यह घृत रक्तपित्त, रक्तगुल्म, दाह, तृष्णा, ज्वर, छर्दि और योनिदोषको नष्ट करता है । ( मात्रा - २ तोले 1 ) (९३२४) काकोल्यादिघृतम् (व. से. । बालरोगा . ) क्षीरवृक्षकषाये तु काकोल्यादौ गणे तथा । विपक्तव्यं घृतञ्चापि पानीयं पयसा सह ॥ क्षीरवृक्ष ( अश्वत्थ - पीपल ) की २ सेर छालको कूट कर १६ सेर जलमें पकावें और ४ सेर रहने पर छान लें । एवं इसमें १ सेर घी तथा १ जकारादि कषाय प्रकरणमें देखिये ।
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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