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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५३० www.kobatirth.org भारत 1- भैषज्य रत्नाकरः (१) पूति करंज, हर्र, कचूर और पोखरमूल; (२) बेलकी छाल, गिलोय, देवदारु और मोंठ, (३) बायबिडंग, पाठा, अतीस और पीपल; ये तीनों क्वाथ आमवातको नष्ट करते हैं । (९२०३) करञ्जादिवमनकषायः (१) ( ग. नि. । अजीर्णा. ५ ) I कारञ्जश्च कषायः स्यादथवाऽर्जुनसार्षपः । पीतः कषायो वमनात् सद्यो हन्ति विषूचि - काम् ॥ करञ्ज ( फल ) का अथवा अर्जुनकी छाल और सरसोंका काथ पीने से वमन होकर विषूचिका नष्ट हो जाती है । (९२०४) करञ्जादिवमनकषायः (२) ( ग. नि. । अजीर्णा. ५ ) करवनिम्बशिखरीगृह्रध्यर्जुनवरसकैः । पीतः कषायो बमनाद्घोरां हन्ति विषूचिकाम् ।। करञ्ज ( फल ), नीमकी छाल, अपामार्ग ( चिरचिटा ), गिलोय, अर्जुनकी छाल और इन्द्रजौ समान भाग लेकर क्वाथ बनावें । इसे पीने से वमन होकर घोर विषृचिका नष्ट हो जाती है । (९२०५ ) करञ्जादिस्वरसः ( वृ. मा. । व्रणशोथा. ) करआरिष्टनिर्गुण्डीरसो हन्याद् व्रणक्रिमीन् ॥ करञ्ज, नीम और संभालु, इनके पत्तोंके रस एकत्र मिलाकर व्रण में भरने से ऋणके कृमि नष्ट हो जाते हैं । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ ककारादि (९२०६) कर्च् रादिक्वाथः ( ग. नि. । ज्वरा. १ ) कर्चूरमार्गी कटुकापटोलीदुरालभा पुष्करमूलमेन्ट्री | व्याघ्री तथा कर्कटङ्गिका च क्वाथोऽयमुक्तः प्रचुरे त्रिदोषे ॥ कालो ह्येष यमश्चैव नियतिर्मृत्युरेव च । तस्मिन्त्रपगते देहान्मेह पुनरुच्यते || कचूर, भरंगी, कुटकी, पटोल, धमासा, पोखरमूल, इन्द्रायणकी जड़, कटेली और काकड़ासिंगी समान भाग लेकर क्वाथ बनायें । इसे पिलाने से भयंकर सन्निपात ज्वर भी नष्ट हो जाता है । (९२०७) कलिङ्गषट्कः ( ग. नि. । अतिसारा. २; वै. जी. । विलास २ ) 1 विश्वका लङ्गातिविषाब्दबिल्वैः सवालकैरुत्क्वथितः कषायः । सशूलाय सशोणिताय सामाय शस्तोsथ कलिङ्गषट्कः ॥ सोंठ, इन्द्रजौ, अतोस, नागरमोथा, बेलगिरी और सुगन्धवाला समान भाग लेकर क्वाथ बनावें । तस्मै इसे पीने से शूल युक्त अतिसार, रक्तातिसार और आमातिसार का नाश होता है । For Private And Personal Use Only (९२०८) कलिङ्गादिकषायः ( वैद्यामृत. ) कलिङ्गशुण्ठीघनतितविक्ता निम्बामृताधान्यरजोन्त्रितानाम् । १ वै. जी. में इन्द्रजौकी जगह कु.ड़ेकी छाल है और सटका अभाव है ।
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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