SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 548
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कपायप्रकरणम् ] परिशिष्ट ५२६ (९१९६) कत्तृणादिकषायः (९२००) करञ्जा दिक्वाथः (१) ( ग. नि. । ज्वरा. १) (व. से. । ज्वरा.) कत्तृणं दारु त्रिफला चन्दनं सपरूपकम् । करओ बिल्वमभिष्ठे त्रायन्त्यग्निः पटोलकम् । कटुका पत्रकोशीरं विपचेत्कार्षिकान् जले ॥ हत्यौ सुषवी व्योष क्वाथः स्यादगलशोधनः ।। तत्सर्व सन्निपातघ्नं पानमात्रेयपूजितम् । करञ्जकी छाल, बेलछाल, मजीठ, त्रायमाणा, कत्तृण ( गंधतृण ), देवदारु, हर्र, बहेड़ा, चीता, पटोल, छोटो कटेली, बड़ी कटेली, करेली और आमला, लाल चन्दन, फालसे को छाल, कुटकी, | सोंठ, मिर्च, पीपल समान भाग लेकर क्वाथ बनावें । तेजपात और खस ११-१। तोला लेकर काथ बनावें। यह क्वाथ ( अभिन्यास सन्निपातमें ) गलेको यह क्वाथ सन्निपात ज्वरको नष्ट करता है। शुद्ध करता है। (९१९७) कपिकच्छूमूलयोगः (९२०१) करनादिक्वाथः (२) (भा. प्र. म. खं. २ । खोरोगा. ; यो. र. । स्त्रीरोगा. ) ( ग. नि. । ज्वरा. १) फपिकच्छूभवं मूलं क्वाथयेद्विधिना भिषक् । योनिः सङ्कीर्णतां याति क्याथेनानेन धावयेत् ।। | नक्तमालगुडूच्यग्निचित्रकारग्वधं समम् ! कोचकी जड़को पानीमें पकाकर काब बनावें। मधूक पाटला मृों शाङ्गेष्टा स्वादुकण्टकः ।। इस क्वाथसे योनिको धोनेसे योनि संकीर्ण निम्बः सप्तच्छदः पाठा वृक्षकः सुषवी शठी। कषायःपूर्ववच्छ्लेष्मज्वरकासगलातिषु । हो जाती है। ____ करंज की छाल, गिलोय, भिलावा, चीतामूल, (९१९८) कपित्थरसयोगः अमलतासका गूदा, महुवेकी छाल, पाढल, मूर्वा (सु. सै. । चि, अ. ५० हिक्का.) मकोय, छोटा गोखरु, नीमको छाल, सप्तपर्ण (सतौने) रसङ्कपित्यान्मधुपिप्पलीभ्यां की छाल, पाठा, इन्द्रजौ, करेला और कचूर समान पिचुपमाणं प्रपिवेत्सुखाय ॥ भाग लेकर क्वाथ बनावें। कैथके ५ तोले रसमें शहद और पीपलका इसे ( शहद मिलाकर ) पीने से कफवर, चूर्ण मिलाकर पीनेसे हिचकी नष्ट होती है। | कास और गलेकी पीड़ा नष्ट होती है। (९१९९) कपित्थादियोगः (व. से.। कर्णरो.) (९२०२) करञ्जादिक्वाथः (३) कपित्थमातुलुङ्गाम्लशृङ्गवेररसैः शुभैः । ___ (यो. र. । वातव्या.) मुखोष्णैः पूरयेत्कर्ण कर्णशूलोपशान्तये ॥ पूतीकपथ्याशठिपुष्कराणि ___ कैथ, बिजौरा नीबू और अदरख; इनके रसों बिल्वं गुडचो सुरदारु शुण्ठी । को एकत्र मिलाकर मन्दोष्णा करके कानमें डालनेसे | विडङ्गपाठातिविषा कणा च कर्णशूल नष्ट होता है। क्वाथास्त्रयः सामसमीरणनाः ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy