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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अथ एकारादिकषायप्रकरणम् (९१३९) एरण्डसप्तकम् । दद्याच्छृगालविनाश्च सहदेवां तथैव च । (वृ. यो. त. । त. ९४; व. से.; वृ. मा. । शूला.; | महासहां क्षुद्रसहां मूलश्चक्षुरकस्य च ॥ ग. नि. । शूला. २३; हा. सं. । स्था. ३ अ. ७) एतत्सम्भृत्य सम्भारं जलद्रोणे विपाचये । एरण्डबिल्वबृहतीद्वयमातुलुङ्ग चतुर्भागावशेषन्तु यवक्षारयुतं पिबेत् ।। पाषाणभिन्नकटुमूलकृतः कषायः । वातिकं पैत्तिकं वापि श्लैष्मिकं सामिपातिकम् सक्षारहिङ्गुलवणो रुबुतैलमिश्रः प्रसह्य नाशयेच्छूलं छिन्नाभ्रमिव मारुतः ॥ श्रोण्यूरुमेढहृदयस्त नरुक्षु पेयः॥ अण्डीके बीज, अरण्डमूल, गोखरुकी जड, अरण्ड मूल, बेलकी जड़की छाल, कटेली, कटेला शालपर्णी, पृष्टपर्णी, बड़ी कटेली, छोटी कटेल, (बड़ी कटेली), बिर्जा रकी जड़की छाल, पाषाणभेद और पीपलामूल समान भाग लेकर क्वाथ बनावें । | पृष्टपर्णी, सहदेवी, माषपर्णी, मुद्गपणी और ईखकी जड़ समान भाग मिलित ६। सेर लेकर ३२ सेर इसमें जवाखार (१ माशा), हींग (१ रत्ती), सेंधा नमक (१ माशा) अरण्डीका तेल (१ तोला) पानी में पकावे और ८ सेर रहने पर छान लें। मिलाकर पीनेसे श्रोणी (नितम्ब ), ऊरु, मेद, इसमें जवाखार मिलाकर ( रोगीकी शक्ति के हृदय और स्तन में होने वाला शूल नष्ट होता है। अनुसार-थोड़ा थोड़ा बार बार ) पिलानेसे पित्तज, (९१४०) एरण्डादिकाथः कफज, और सान्निपातिक शूल नष्ट होता है । (धन्व.; र. र. । स्त्रीरोगा. (९१४२) एलादिकषायः एरण्डमूलममृनामधिष्ठारक्तचन्दनम् । ( ग. नि. । मूत्राबाता २८) दारुपमयुतः क्वाथो गर्भिण्या ज्वरनाशनम् ॥ एलादुरालभैरण्डपथ्यापाषाणभित्समम् । अरण्डमूल, गिलोय, मजीठ, लाल चन्दन, देवदारु | गोक्षुरः कर्कटीबीनं तथा बीजं कुरण्टकात् ॥ और कमलपुष्प समान भाग लेकर क्वाथ बनावें । यह क्वाथ गर्भिणीके ज्वरको नष्ट करता है। सम्मिथ्य क्याथपानेन मूत्ररोधोनिवर्तते ।। (९१४१) एरण्डादियोगः ___इलायची, धमासा, अरण्डमूल. हर और पाषाण (सु. सं. । चि. अ. ४२ गुल्मा.) भेद समान भाग लेकर क्वाथ बनावें । इसमें गोखरु, एरण्डफलमूलानि मूलं गोक्षुरकस्य च । ककड़ी के बीज और इन्द्रजौ; इनका चूर्ण मिलाकर शालपर्णी पृश्निप) वृहती कण्टकारिकाम् ॥ . पीनेसे मूत्रावरोध नष्ट होता है । इति एकारादिकषायप्रकरणम् For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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