SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 494
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ San Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir घृतपकरणम् ] परिशिष्ट ४७५ घृतार्द्रभागेन च माक्षिकेण शक्ति इतनी बढ़ जाती है कि मनुष्य १० स्त्रियोंकों विधाय पाकं सहदुग्धपानः। संतुष्ट कर सकता है। सुजीत यस्त्वाशु च कामिनीनां (मात्रा--१ से २ तोले तक ।) दशं तु विद्रावयते पुरस्तात् ॥ (९०३७) आमलक्यादिलेहः (हा. सं. । स्था. ३ अ. १६) आमले के पके फलोंके शुष्क चूर्णको आम आमलक्या रसेनाथ घृष्टं चन्दनकं मधु । लेही के स्वरसकी १०० भावना दें। तदनन्तर उसे गुटिकामलमानेन लेहो हन्ति वर्मि ध्रुवम् ॥ समान भाग घीमें भून लें और घोसे दो गुनी खांडकी ___आमले के रसमें सफेद चन्दनको घिस लें। चाशनी में मिलाकर उसमें घीसे आधा शहद मिला- इसमें शहद मिलाकर एक आमले के बराबर (१ कर सुरक्षित रखें। तोले के लगभग) चाटने से वमन अवश्य नष्ट इसे दूधके साथ सेवन करने से शीघ्रही काम- | हो जाती है । इत्याकारादिलेहप्रकरणम् अथाकारादिघृतप्रकरणम् (९०३८) आमलकघृतम् आरग्बध ( अमलतास )की जड़के कल्क और क्वाथके साथ १०० बार पकाया हुवा घृत पीने (सु. सं. । चि. अ. ५) और खरसारका क्वाथ (पानीकी जगह ) पीनेसे सर्वेषु च पुराणघृतमामलक कुष्ठ रोग शीघ्र ही नष्ट हो जाता है। रसविपक्वं वा पानार्थे ॥ ...( अमलतासकी जड़ २ सेर, पानी १६ सेर, . आमलेके रसके साथ पकाया हुवा पुराना घी शेषक्वाथं ४ सेर; इसमें १ सेर धी और १० तोले पिलाना हर प्रकारके वातरक्तमें लाभ पहुंचाता है।। अमलतासकी जड़ का कल्क मिलाकर पकावे । क्वाथ जलनेपर छान लें। उसमें पुनः उपरोक ( रस ८ सेर, घी २ सेर ।) क्वाथ और कल्क डालकर पकावें । इसी प्रकार (९०३९) आरग्वधादिघृतम् १०० बार पाक करें ।) (९०४०) आरुष्करघृतम् ( वा. भ. । चि. अ. १९) (व. से. । ग्रहण्य.) आरग्वधस्य मूलेन शतकृत्वः भृतं घृतम् । । आरुष्करं हिङ्गु कणा सयष्टी पिबन्कुष्ठं जयत्या भजन्सखदिरं जलम् ॥ | पूतीकशुण्ठी मरीचं गजाहा। . For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy