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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४६२ भारत - भैषज्य रत्नाकरः अथाकारादि- मिश्रप्रकरणम् (८९९६) अगारधूमादिवर्तिः ( यो. र. | उदावर्ता.) www.kobatirth.org अगारधूमः पिप्पल्यो मदनं सजसर्षपाः । गोमूत्रपिष्टाः सगुडा फलवर्तिः प्रशस्यते ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (८९९८) अजमूत्रादियोगः ( यो त । त. ७५ ) वस्तमूत्रं च सघृतं नवनीतं च माहिषम् । पलत्रयं पिवेन्नारी बन्ध्या ते सुतोत्तम् ॥ बकरे का मूत्र, घी और भैंसका मक्खन ५-५ तोले लेकर सबको एकत्र मिलाकर सेवन करने से बन्ध्या स्त्रीको पुत्र प्राप्ति होती है । [ अकारादि घरका धुवां, पीपल, मैनफल और राई समान भाग लेकर चूर्ण बनावें और उसे गोमूत्र में पीसकर ( सबके बराबर ) गुड़में मिलाकर ( कन उंगली के समान) बत्तियां बना ले 1 (८९९९) अजाज्यादिमुखधावनम् ( यो. र. । अरोचका.; ग. नि. । अरोचका. १३) इनमें से एक बत्ती मलमार्गमें रखनेसे उदा - अजाजी मरिचं कुष्ठं बिडं सौवर्चलं तथा । वर्तका नाश होता है । (८९९७) अजगन्धादिपानकम् ( ग. नि. । ज्वरा. १ ) अजगन्धा त्रिकटुकं तथैव च हरीतकी । पाठा मूर्वा समञ्जिष्ठा विडङ्गं सैन्धवं वचा || एतान् सर्वान् समानीय कल्कपेष्यान् प्रकल्पयेत् तस्यार्धशुक्ति पूतस्य गव्यमूत्रेण पाययेत् ॥ एतद्धि पानकं श्रेष्ठ कासश्वासनिबर्हणम् । सन्निपातभवान् व्याधीन् सद्य एव चिकित्सति । । जाती है । मधुकं शर्करा तैलं वातिके मुखधावनम् || करदन्तकाष्ठं च विधेयमरुचौ सदा ॥ जीरा, कालीमिर्च, कूठ, बिडलवण, संचल, (काला नमक), मुलैठी और खांड; इनके समान भाग चूर्ण को एकत्र मिलाकर उसमें थोड़ासा तिलका तेल मिला लें । इसे जिह्वा और मुखमें मलकर मुख साफ करनेसे वातज अरुचि नष्ट होती है । raat दातौन करनेसे भी अरुचि नष्ट हो (९०००) अजीर्णनाशकगणः अजगन्धा (बन तुलसी या बन अजवायन ), सोंठ, मिर्च, पीपल, हर्र, पाठा, मूर्वा, मजीठ, बाय ( यो. र. । अजीर्णा. ) बिड़ंग, सेंधानमक और बच समान भाग लेकर | नारीकेलफलेषु तण्डुलमथ क्षीरं रसाले हितं जम्बीरोत्थरसो घृते पानी के साथ बारीक पीस लें । इसमें से १| तोले 1 कल्क को गोमूत्र में मिलाकर पीने से कास, श्वास और सन्निपात विकार शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं । ( व्यवहारिक मात्रा - ३-४ माशे । ) For Private And Personal Use Only समुचितः सर्पिस्तु मोचाफले । गोधूमेषु च कर्कटी हितमा मांसाशने काञ्जिक नारङ्गे गुडभक्षणं कथितं पिण्डालुगं कोद्रवे ||
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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