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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१० भारत-भैषज्य रत्नाकरः [ अकारादि और नीलोत्पल, इनका चूर्ण (४-४ तोले) लेकर यह घृत कास, श्वास, हिचकी और हृद्रोगको सबको पानीके साथ पीस लें। नष्ट करता है। (२ सेर) घीमें यह कल्क और (८ सेर) दूध (मात्रा-१ तोला।) मिलाकर मन्दाग्नि पर पकावें। जब पानी (दूध) (८८४७) अमृतं घृतम् जल जाय तो घीको छान लें। (ग. नि. । गरविषा. ८ ; व. से. । विषा. ; ___इसकी नस्य देनेसे रक्तपित्तका नाश होता है। धन्व. । विषा.) यह घृत स्त्रियोंके प्रदर और हाथ पैरों तथा अपामार्गस्य बीजानि शिरीषस्य तथैव च । शरीरकी दाह एवं वरमें भी उपयोगी है। द्वे मेदे काकमाची' च गवां मूत्रेण पेषयेत् ।। ऊर्ध्वगत रक्तपित्त में वासास्वरस या शतावरके | सपिरेतेषु संसिद्धं विषसंशमनं परम् । स्वरससे बनाया हुवा घृत भी विशेष उपयोगी है। अमृतं नाम विख्यातमपि सञ्जीवयेन्मृतम् ।। (८८४५) अभयादिघृतम् (१) ___अपामार्ग (चिरचिटे) के बीज, सिरसके बीज, (ग. नि. | हृद्रोगा. २७) मेदा, महामेदा और मकोय (४-४ तोले) लेकर पञ्चाशदभयाकल्क सौवर्चलपलद्वयम् । सबको गोमूत्रके साथ पीस लें। घृतप्रस्थं जले सिद्धं हृद्रोगश्वासगुल्मनुत् ।। (२ सेर) धीमें उपरोक्त कल्क (और ८ सेर २ सेर धीमें पचास हरौंका चूर्ण (कल्क), | | पानी) मिलाकर मन्दाग्नि पर पकावें । जब पानी १० लोले संचल (काला नमक) और ८ सेर पानी जल जाए तो घीको छान लें। मिलाकर पानी जलने तक पकावें और फिर छान लें। | यह घृत अत्यन्त विषनाशक है । इससे मृत इसे पीनेसे हृद्रोग, श्वास और गुल्मका नाश प्रायः रोगी भी बच जाता है। होता है। । (८८४८) अमृतलतादिघृतम् ( मात्रा--१ से २ तोले तक।) (भा. प्र. । म. खं. २ पाण्डवा. ; व. से. । पाण्ड्या. ; (८८४६) अभयादिघृतम् (२) (ग. नि. । हिक्कावासा.) घृ. यो. त. । त. ७४) । कासे श्वासे च हिक्कायां हृद्रोगे चापि पूजितम्। . अमृतारसकल्कं प्रसाधितं तुरगबिषः सर्पिः। क्षीरचतुर्गुणमेतद्वितरेच हलीमकातेभ्यः ॥ घृतं पुराणं संसिद्धमभयाबिडरामः ॥ कल्क-हर्र, बिडनमक और हींग (५-५ गिलोयके कल्क और स्वरस तथा दूधसे तोले) लेकर पानीके साथ पीस लें। | सिद्ध भैंसका घृत पीनेसे हलीमक रोग नष्ट होता है। (१२० तोले) पुराने धीमें यह कल्क और (गिलोयका कल्क १० तोला; गिलोयका (६ सेर) पानी मिलाकर मन्दाग्नि पर पकायें । जब | स्वरस १ सेर, घी १ सेर, दूध ४ सेर ।) पानी जल जाए तो धोको छान लें। १ श्वेते द्वे काकमाची चेति पाठान्तरम् । For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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