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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४०८ www.kobatirth.org भारत-भैषज्य रत्नाकरः अनाजके ढेर में दबा दें । एवं ३ सप्ताह पश्चात् निकालकर उसे दालचीनी, तेजपात, इलायची, केसर, कपूर, लौंग और जावित्री के चूर्ण से सुगन्धित करके १० तोलेकी मात्रानुसार सेवन करें । ( व्यवहारिक मात्रा १ - १॥ तोला । ) इसके सेवन कालमें अधिक गरम पदार्थोंसे परहेज करें और प्यास लगने पर मद्य पियें । यह बल, वर्ण, अग्नि, बुद्धि, मेधा और स्मृति को बढ़ाता है तथा अन्य सैकड़ों औषधे से आराम न होने वाले बहुतसे रोगोंको नष्ट कर देता है । [ अकारादि जातीफलं केशरं च त्वक् पत्रं वंशरोचना । एलाद्वयं कुङ्कुमं च गुडूचीसच्वमेव च ॥ एतेषां कर्षमादाय मधुनः कुडवत्रयम् । कृत्वा लेहं ततो मात्रां यथायोग्यां प्रदापयेत् ॥ धातुक्षयं तथा वातं ध्वजभङ्गं नियच्छति । | अनेनाशीतित्रर्षोऽपि युवेव च वृषायते ॥ - हड्डी पर चोट लगी हो, हड्डी अपने स्थान से उतर गई हो या टूट गई हो तो उसके लिये इससे बढ़कर अन्य कोई उपाय नहीं है । | असगंध, गोखरु, शतावर, विदारीकन्द, बीजबन्द, मुलैठी, तालमखाना, कौंच के बीज, सेंभलकी मूसली, विधारेके बीज, लौंग, जावित्री, जायफल, नागकेसर, दालचीनी, तेजपात, बंसलोचन, छोटी और बड़ी इलायची, केसर और गिलोयका सत ११-१| तोला लेकर सबके बारीक चूर्ण को ६० तोला ( १२० तोला ) शहद में मिला लें । (८८४१) अश्वगन्धाद्यवलेहः (ग. नि. । परि. अवलेहा. ५ ) अश्वगन्धा गोक्षुरश्च शतवीर्या विदारिका । बलबीजानि यष्ट्या बीजानीक्षुरकस्य च ॥ कपिकच्छोश्च बीजानि शाल्मलीमूलकं तथा । वृद्धदारुकवीजानि लवङ्गं जातिपत्रिका | Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इसे यथोचित मात्रानुसार सेवन करने से धातुक्षय, वातरोग, और ध्वज भंगका नाश होता है । इसके सेवन से वृद्ध भी युवाके समान हो है। ( मात्रा - १ से २ तोले तक 1 ) अश्वगन्धापाकः रस प्रकरण में देखिये | इत्यकाराचवलेह - प्रकरणम् For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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