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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अवलेहमकरणम् ] परिशिष्ट ४०७ (वक्ष्यमाणानि चात साथ खाकर ऊपरसे दूध पीना और फिर ( समय --- यूषणकुष्ठयमानि द्राक्षा सैला सजीरकद्वितया । पर ) भोजन करना चाहिये। सुरदारुसिन्धुसविडं सौवर्चलरोमकं च सामुद्रम्। इसके सेवनसे राजयक्ष्मा, पाण्डु, कामला, पलसम्मितानि कृत्वा श्लक्ष्णवदापयेन्मतिमान् ।। और अतिसारका नाश होता तथा बलवृद्धि होती है।। आलोडय धान्यराशी (मात्रा-१ से २ तोले तक ।) ___सप्ताहांस्त्रीन्न्यसेच कृतरक्षः। | उद्धृत्य तदनुसिद्धं सुतिथिमुहूर्ते तथा सुनक्षत्रे ॥ अमृतभल्लातकावलेहः | त्वक्पत्रैलाकेसरकर्पूरलवङ्गजातिचूर्णेन । (भा. प्र. । म. खं. २) सुरभीकृतं च नरः खादेट्रिपलोन्मितं पिण्डम् ।। प्र. सं. १८६ देखिये । उसमें तीसरे श्लोक | अत्यर्थोष्णविवर्जी तपितश्च पिवेत्सरां यथेम। | अमृतादमृताख्योऽयं रसोनपिण्डः पराशरेणोक्तः।। "शरावमात्रकं सर्पिग्धं स्यादाढकं तथा।। हतपतितच्युतभग्नसन्धिसितां प्रस्थमितां दद्यात्प्रस्थाई माक्षिक विभुक्तास्थिभग्नदेहानाम् । क्षिपेत् ।। " | अस्मात्परं नराणां न ह्यस्ति भेषजं वाऽन्यत् ।। यह पोठ छूट गया है। बलवर्णवह्निजननं स्मृतिमेधाबुद्धिवर्धनं धन्यम् । अर्थात् उसमें आधासेर घी, ४ सेर दूध, १ शमयति सर्वविकाराशतशोऽन्यभैषजैरजितान्॥ सेर खांड और आधासेर शहद भी डालना चाहिये। ___छिला और कूटा हुवा ल्हसन ६। सेर, छिले (८८४०) अमृतरसोनपिण्डः और कुटे हुवे काले तिल ३ सेर १० तोले, तक ९ सेर ३० तोले ( १८ सेर ६० तोले ), चुक्र (वृ. मा. । आमा.) (शुक्त) १। सेर (२॥ सेर), गुड़ १। सेर, अदरक क्षुण्णं रसोनपलशत ( पिसा हुआ) १। सेर, बिजौरे नीबूका रस १॥ मसिततिलानां पलानि पश्चाशत् । सेर ( २॥ सेर ), तिल तेल २॥ सेर, घी २।। सेर घृतलिप्तभाजनस्थे तथा सोया, गजपीपल, अनारदाना, वृक्षाम्ल तक्रेण समेन तत्कुर्यात् ।। (तितडीक ), धायके फूल, नागरमोथा, सोंठ, काली विंशतिपलानि चुक्रा मिर्च, पीपल, कूट, अजवायन, मुनक्का, इलायची, त्सुण्डाईकमातुलुङ्गमेतावत् । जीरा, काला जीरा, देवदारु, सेंधानमक, बिड नमक, तिलतैलानि च ताव संचल ( काला नमक ) रोमक लवण, और सामुद्र त्तावन्त्येवात्र सर्पिषो दद्यात् ॥ लवण; इनका चूर्ण ५-५ तोले लेकर सबको एकत्र शतपुष्पा गजपिप्पलि मिलाकर अच्छी तरह आलोडित करके घृतसे चिकने दाडिमक्षाम्लधातकीमुस्तम् ।। किये हुवे मटके में भरकर उसका मुख बन्द करके For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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