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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३३६) भारत-भैषज्य-रत्नाकर अथ खकारादि लेपप्रकरणम् [११००] खदिरादि लेपः (१) । [११०२] खरमञ्जर्यादि लेपः (वृ. नि. र. । क्षु. रो.) (वे. म. । १३ पट.) खदिरारिष्टजम्बूनां त्वग्भिर्वा मूत्रसंयुतैः। पिष्टा लिप्ते योनौ मले खरमञ्जरीपुनर्नवयोः। कुटजत्वक् सैन्धवं वा लेपाद्धन्यादरुषिकाम् ॥ | नवस्तायाः शूलं योनिगतं सकलमपनयतः॥ खैर, नीम और जामन की छाल या कुड़े की चिरचिटे और पुनर्नवा (साटी) की जड़ को छाल और सेंधा नमक को गोमूत्र में पीसकर लेप पीसकर योनि में लेप करने से नवप्रसूता (जच्चा) करने से अरुषिका का नाश होता है। का योनिशूल नष्ट होता है। [११०१] खदिरादि लेपः (२) [११०३] खजूराद्यो लेपः (वृ. नि. र. । मसू.) (ग. नि. । २१ । आ. वा.) खदिरारिष्टपत्रैश्च शिरीषोदुम्बरन्वचाम् । | फलं खजूरिसंभूतं तथा वल्मीकमृत्तिका । कुर्याल्लेपाकफोत्थायां मसूर्या भिषगुत्तमः॥ | उरुस्तम्मे प्रलेपोऽयं मधुना सर्षपान्वितः॥ खैर, नीम के पत्ते, सिरस की छाल और गूलर खजूर के फल, बांबी की मिट्टी और सरसों की छाल का लेप कफज मसूरिका के लिए को पीसकर शहद में मिलाकर लेप करने से उरुहितकारी है। स्तम्भ का नाश होता है। अथ खकारादि रसप्रकरणम् [११०४] खपरमारणम् (रसे. सा. सं.) । घोटकर मनुष्य के मूत्र, गोमूत्र और जौ की कांजी शोधनम् में सेंधा नमक के साथ सात दिन या ३ दिन तक (रसे. चि. म. अ. ७; आ. वे. प्र. अ. १) | भावना देने से वह शुद्ध हो जाता है । पुष्पाणां रक्तपीतानारसैः पिष्ट्वा च भावयेत खपरिया को खूब तपा तपा कर सात बार नरमत्रैश्च गोमूत्रैर्यवाम्लैश्च ससैन्धवैः । बिजौरे नीबू के रस में बुझाने से वह शुद्ध हो सप्ताहं त्रिदिनं वापि पश्चाच्छुध्यति खर्परः ॥ जाता है। खपरः परिसन्तप्तः सप्तवाराभिमजितः। खपरिया और पारदको एकत्र १ दिन तक जम्बीरज रसस्यान्तनिर्मलत्वमवाप्नुयात् ।। खरल करके यथा विधि बालुका यन्त्र में पकाने से मारणम् --- | खपरिया की भस्म हो जाती है। ' (र. चं; आ. वे. प्र. अ. ९] [११०५] खर्परसायनम् । खर्परं पारदेनैव वालुकायन्त्रगं पचेत् । (र. र. स. । अ. २) चूर्णयित्वा दिनं यावच्छोभनं भस्म जायते ॥ तद् भस्म मृतकान्तेन समेन सह योजयेत् । खपरियाको लाल और पीले फूलों के रस में | गुञ्जामितं चूर्ण त्रिफलाक्काथसंयुतम् ।। For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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