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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir खकारादि-लेह (३२७) अथ खकारादि लेह प्रकरणम् [१०७५] खण्डकूष्माण्डः (१) धात्रीतुल्या सिता योज्या गव्यमाज्यं पलद्वयम् (बृ. यो. त. । ७५ त.) मन्दाग्निना पचेत्सवे यावद्भवति पिण्डितम् ॥ खण्डकामलकाद् ग्राह्यो रसः प्रस्थद्वयोन्मितः। पलाधं पलमेकं वा प्रत्यहं भक्षयेदिदम् । खण्डकूष्माण्डके कंसः स्वित्रकूष्माण्डकद्रवात् । खण्डकूष्माण्डकं ख्यातमम्लपित्तापहं परम् ॥ अन्यत्र खण्डकूष्माण्डे संमतः सकलो रसः। पेठेका रस १२॥ सेर, गायका दूध १२॥ सेर पश्चाशच पलं स्विनं कूष्माण्डात्प्रस्थमाज्यतः।आमलेका चूर्ण ०॥ सेर, मिश्री ०॥ सैर और गाय का पक्कं पलशतं खण्डं वासाक्वाथाढके पचेत् । पी ०॥ सेर लेकर यथा विधि मंदाग्नि पर पाक शिवा धात्री धनं भार्गी त्रिसुगन्धैश्च कार्षिकैः।। सिद्ध करें। तालीसविश्वधान्याकमरिचैश्च पलांशकैः । ___ इसमें से ५ तोला या २॥ तोला प्रति दिन पिप्पलीकुडवं चैव मधुमानी प्रदापयेत् ॥ । खाने से अम्लपित्त का नाश होता है। कासंश्वास ज्वरं हिको रक्तपित्तं हलीमकम् । हृद्रोगमम्लपित्तं च पीनसं च व्यपोहति ॥ । [१०७७] खण्डकूष्माण्डकावलेहः (३) __ उसीजे हुवे पेठे के ३ सेर आध पाव टुकडों (ग. नि. । ५ लेहाधि.) को २ सेर घी में भूनें फिर ४ सेर आमलेका स्वरस प्रस्थेनाज्यस्य भृष्टं पलशतमऔर पेठे को उसेने (पकाने) के बाद उससे जो रस लघुच्छिन्नकूष्माण्डकस्य निकला हो वह सब या उसमे से ४ सेर रस, ६। सेर पक्तव्यं खण्डतुल्यं मधु शिशिखाण्ड और ४ सेर बांसे का क्याथ एकत्र मिलाकर रतरे तत्र दद्याद् घृतार्धम् । पकावें और गाढ़ा हो जानेपर उसमें हैड़, आमला, व्योषं धान्यं सजीरं प्रसूतिकालीमिर्च, भारंगी और त्रिसुगन्ध (तेजपात,दालचीनी मितमथ स्याचातुर्जातकंच इलायची) का चूर्ण १।- १॥ तोला, तालीस पत्र, प्रक्षेप्यं रक्तपित्तं हरति बलकरः सोंठ, धनिया और कालीमिर्च ५-५ तोला, तथा पीपल __खण्डकूष्माण्डकोऽयम् ।। पाव सेर और शहद १ सेर मिलाकर रखें। ___इसके सेवन से खांसी, श्वास, ज्वर, हिचकी, पेठेके बारीक बारीक ६। सेर टुकडोंको २ सेर रक्तपित्त, हलीमक, हृद्रोग, अम्लपित्त और पीनसका धीमें भूनें फिर उसमें ६। सेर खांड मिलाकर विधिनाश होता है। वत् अवलेह बनावें और पाक सिद्ध होनेपर उसमें [१०७६] खण्डकूष्माण्डकावलेहः (२) । त्रिकुटा, धनिया, जीरा और चातुर्जात का चूर्ण (वृ. यो. त. । १२२ त.) १०-१० तोला तथा (बिल्कुल ठंडा होजाने पर) कूष्माण्डस्य रसो ग्राह्यः पलानां शतमात्रकम।। १ सेर शहद मिलावें । यह अवलेह रक्तपित्तनाशक रसतुल्यं गवां क्षीरं धात्रीचूर्ण पलाष्टकम् ॥ । और बलकारक है। For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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