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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org त-भैषज्य - (३२२) खांड और शहद का प्रक्षेप डालकर पीने से पिपासा, नष्ट होता है। [१०६०] खर्जूरादिमन्धः लाजाचूर्ण प्रतीवापं शर्करामधुसंयुतम् । जातीपुष्पाधिवासं तु पिबेत्तृट्छर्दिमूर्च्छितः ॥ छर्दि, मूर्छा, दाह, भ्रम, मद और वातपित्त ज्वर दाहश्रममदाविष्टो वातपित्तज्वरातुरः । पीत्वा निवृत्तिमाप्नोति दीप्तं गृहमिवाम्बुभिः । खजूर, खस, मुनक्का, पद्माक, कमलकेसर, आमला, फालसा, कटेली, खरैटी, मुल्हैठी, चन्दन, महुवेके फूल, खम्भारी, काकोली और नागरमोथे का क्वाथ बनाकर रात को मिट्टी के नवीन बरतन में भरकर रख दें फिर प्रातः काल उसे चमेली के फूलों से सुगन्धित करके उसमें खीलों के चूर्ण तथा (शा. ध. । म. खु. अ. ३; यो. र; पाना.) खर्जूरदाडिमं द्राक्षा तिन्तिडीकाम्लिका मलैः।। सपरूपैः कृतो मन्थः सर्वमद्यविकारनुत् || खजूर, अनार, दाख, तितिड़ीक, इमली, आमला और फालसे का मन्थ बनाकर पीने से समस्त भद्यविकार रुष्ट होते है । । भारत - रत्नाकर अथ खकारादि चूर्णप्रकरणम् Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कर चाटें या शहद में वटक बनाकर सेवन करें । । | [१०६१] खण्डसमं चूर्णम् (ग.नि. । चूर्णा.) त्रिफलान्योषविवादपिप्पलीमूलचित्रकैः । स्वगेलापत्र चविका तिन्तिडीकाम्लवेतसैः ॥ समांशं धातुमाक्षीकं सर्वैस्तुल्या सिता भवेत् भक्षयित्वा यथा सम्यगनुपानं प्रयोजयेत् । चूर्णितं मधुना लेह्यं वटकान् वा समाक्षिकान् । नाशयेत्कुष्ठमालस्यं प्रमेोदरकामलाम् ॥ पाण्डत्वं ग्रहणीदोष हलीमकशिरोरुजम् । प्रसेकमरुचि मूर्छा हल्लासं मन्दवहिताम् || रक्तपित्तं परीसर्प श्वयथुं चाङ्गतापताम् जनयेत्प्राणमुत्साहं बलवर्णस्थिराङ्गताम् || चूर्णं खण्डसमं नाम समस्तान्नाशयेद् गदान् । इसके सेवन से कुष्ठ, आलस्य, प्रमेह, उदररोग, कामला, पाण्ड, ग्रहणीविकार, हलीमक, शिरपीड़ा, प्रसेक (मुंह से पानी आना) अरुचि, मूर्च्छा, जी मचलाना, अग्निमांद्य, रक्तपित्त, विसर्प, सूजन और संताप का नाश होता तथा उत्साह, बल, वर्ण और स्थिराङ्गता ( अङ्गो की दृढ़ता ) प्राप्त होती है + [१०६२] खदिरादिपुष्पयोगः (ग. नि. । र. पि. ) त्रिफला, त्रिकुटा, बेल, नागरमोथा, पीपलामूल, चीता, दारचीनी, इलायची, तेजपात, चन्य, तितिडीक और अम्लवेत १-१ भाग, सोनामक्खी भस्म सब के बराबर और इस सब के बराबर खांड लेकर चूर्ण करें । इसे यथोचित अनुपान के साथ शहद मिला खदिरस्य प्रियङ्गूनां कोविदारस्य शाल्मलेः । पुष्पचूर्णानि मधुना लिह्याद्वा रक्तपित्तनुत् ॥ खैर, फूलप्रियंगु, कचनार और सेंभल के + यदि इसमें सोनामक्खी तक सब चीजों के बराबर लोह भस्म और फिर उस सब के बराबर मिश्री मिलाई जाए तो गदनिग्रह के 'पाण्डवाधिकार' में कथित 'खण्ड समकम्" चूर्ण होजायगा । उसके गुण भी इसी के समान हैं । For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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