SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 340
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir खकारादि-क्वाथ (३२१) मिली हुई मिट्टी का लेप करें और उसके चारों ओर | पशुमूत्रयुतं पिब सप्त दिनं गोबर युक्त ईंधन डालकर अग्नि लगा दें। इस क्रिया कृमिकोटिशतान्यपि हन्यत्यचिरात् ॥ से वृक्ष का रस निकल कर घड़े में जमा होगा। खैर, इन्द्र जौ, नीम, बच, त्रिकटा, त्रिकुटा, जब घड़ा भर जाय तो उस रस को छान कर | त्रिफला और निसोत को गोमूत्र में पकाकर सात किसी दूसरे बरतन में भर कर गुप्त (सुरक्षित) रक्खें। दिन तक पीने से अत्यन्त प्रवृद्ध क्रिमि भी शीघ्र ही इसे यथोचित मात्रानुसार आमले का रस, | नष्ट हो जाते हैं। शहद और घी मिलाकर सेवन करना चाहिये और [१०५६] खदिराष्टकम् औषधि पच जाने पर भल्लातकविधान के समान | (वृ. यो. त. । १२६ त; ग. नि. विसर्प; यो. चि. म. अ. ४) आहार परिहार ( परहेज़) आदि करना चाहिए। ___ यह रस १ सेर सेवन किया जाए तो १०० खादरात्रफलारिष्टपटालामृतवासका ।। वर्षकी आयु प्राप्त होती है। क्वाथोऽष्टकाङ्गो जयति रोमान्तिकमसरिकाः । उपरोक्त विधान के अभाव में ६। सेर खैर- | कुष्ठविस्फोटवीसर्पकण्डादीनपि पानतः॥ सार को ३२ सेर पानी में पकावें । जब सोलहवां खैर, त्रिफला, नीम, पटोलपत्र, गिलोय और भाग शेष रह जाय तो उतार कर छानकर गुप्त | वांसे का क्वाथ रोमान्तिका, मसूरिका, कुष्ठ, विस्फोरक्खें और आमले का रस तथा शहद और धी टक, वीसर्प, खुजली आदिका नाश करता है। मिलाकर सेवन करें। समस्त वृक्षसारों के कल्प | | [१०५७] खदिरोदकम् ___ (यो. र. । कुष्ठे. वृ. यो. त. १२० त.) की यही विधि है। ६। सेर पर्यन्त खैरसार का प्रलेपोद्वर्तनस्नानपानभोजनकर्मसु । चूर्ण या खैर का क्वाथ यथोचित मात्रानुसार प्रातः शीलित खादिरं वारि सर्वत्वग्दोषनाशनम् ॥ काल सेवन करना चाहिये अथवा खैर सार के | खैरके पानी (क्वाथ) का प्रयोग करनेसे समस्त क्वाथ से भेड़ का घी सिद्ध करके सेवन करना प्रकारके त्वग्दोष (चमड़ी के रोग) नष्ट हो जाते हैं। चाहिए । इससे समस्त कुष्ठ नष्ट होते हैं। [१०५८] खघुरादिकषायः(ग. नि. । प्रमे.) [१०५४] खदिररादिकषायः .... ... .... .... सक्षौद्रो रक्तप्रमेहजित् । (ग. नि. । प्रमेह) क्वाथः स्वर्जूरकाश्मर्यतिन्दुकास्थ्यमृताकृताः ।। खदिर कदरपूगक्वार्थ क्षौद्राह्वये पिबेत् । खजूर, खम्भारी और तेंद के बीजों का काथ क्षौद्र प्रमेह (मधुमेह) में खैर, सफेद खैर | शहद डालकर पीने से रक्तप्रमेह का नाश होता है। (या कीकर) और सुपारी का क्वाथ पीना चाहिए। [१०५९] खजूरादिक्वाथा(ग. नि. । ज्व.) [१०५५] खदिरादिक्वाथः खर्जरोशीरमृद्वीकापमकं पद्मकेसरम् । (वृ. नि. र. ग. णि;। श्रमि.) धात्री परूषकं व्याघ्री बला मधुकचन्दनम् ॥ खदिरः कुटजः पिचुमन्दवचा- मधूकपुष्पं काश्मय शीतपाकी घनं तथा । त्रिकत्रिफलात्रियतासहितम् । । पक्त्वा पर्युषितं रात्रौ स्थितं मुद्राजने नवे ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy