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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ककारादि-रस (३१५) बड़े खरल में डालकर धतूरे, पेठे और गोभी के । कर्षाऽर्द्धमात्रः क्रिमिपीडिताय ॥ रस तथा आक और सेंडके दूधमें २-२ दिन खूब हिंगुलोत्थपारद एक तोला, शोधित आमलाघोटें । फिर उसे वावची, गुञ्जा (चौटली) और सार गन्धक दो तोले, अभ्रक भस्म तीन तोले, लोह भिलावे के तेल में ५-५ दिन तक घोटे । इसके , भस्म चार तोले शुद्ध किया हुआ बच्छनागविष एक पश्चात् उसे शीशी में भरकर (बालुका यन्त्र द्वारा) तोला, बायबिडंग पांच तोले, कुड़े की छाल ढाई पांच पहर की अग्नि दें। फिर निकालकर उपरोक्त | तोले । इन चीज़ों में से प्रथम पारद गन्धक की तेलों में घोटें । (और उसी प्रकार पका) जब शीशी कजली करने के बाद अभ्रक भस्म और लोह भस्म के तल भाग में वङ्ग की खोटिका के समान सफ़ेद को भी डाल कर खूब घोटे । बादमें सब चीज़ों को वर्ण दीखने लगे तो (स्वांग शीतल होने पर) शीशी कूट कपरछन करके इसे कजली में डाल कर मर्दन के नीचे लगे हुवे पारे की भस्म के समान हरताल करे । जब सब चीजें मिल जाय तब शीशी में भर के सत्व को निकाल लें। कर रख छोड़े, यह क्रिमि रोग के नाश करने के इसे २ रत्ती की मात्रानुसार सेवन कराने से लिये कालकरके समान है। इसकी मात्रा छः माझे गलकुष्ट का नाश होता है। तक की है शहद के साथ या गरम पानी के __"इसे श्वेत कुष्ठ में कठूमरकी जड़ के रस के साथ दे सकते हैं। साथ देना चाहिए। १ भाग हरताल सत्वके योग से १८ भाग तांबा चांदी होजाता है"। [१०३६] कृमिकालानलो रसः बन में “वनदण्डि" नामक एक वृक्ष होता है, (र. रा. मुं.। कृमि.) उसके पत्ते सोना पाठा के समान उससे कुछ बड़े | विडङ्ग द्विपलञ्चव विषचूर्ण तदर्धकम् । होते हैं । उसकी जड़ का चूर्ण करके ७॥-७॥ लोह चूर्ण तदर्धश्च तदधं शुद्धपारदम् ।। माशे की गोलियां बनावें । इनमें से प्रति दिन एक | रस तुल्यं शुद्धगन्धं छागीदुग्धेन पेषयेत् । गोली खिलावें । इससे अत्यन्त विरेचन होकर १ | छायाशुष्का वटीं कृत्वा खादेत् पोडशरक्तिकाम्।। सप्ताह के बाद गलत्कुष्ठ सूखने लगता है और | धान्यजीरानुपानेन नाम्ना कालानलो रसः । कृमियुक्त घोररूप, घृणित तथा वैद्यों से असाध्य | उदरस्थं कृमीन हन्याद् ग्रहण्यशः समन्वितम् ॥ अठारह प्रकार के कुष्ट नष्ट हो जाते हैं । अग्निदः शोथशमनो गुल्मप्लीहोदरान जयेत् । [१०३५] कृमिकालकूटो रसः | गहनानन्दनाथेन भाषितो विश्वसंपदे ॥ (र. चि. म.। ३ स्तब्कः ; रसा. सा.) ___बायबिडंग १० तोला, शुद्ध मीठा तेलिया सूतेन्द्रगन्धाऽभ्रकलोहभस्म ५ तोला, लोह भस्म २॥ तोला, शुद्ध पारा १॥ वर्धिष्णुमात्रं प्रथमाद्वितीयं तोला और शुद्ध गन्धक १। तोला लेकर बकरी विष रसेन्द्रेण सम विडङ्गं के दूध में घोट कर गोलियां बनाकर छाया में समस्ततुल्यं कूटजत्वगर्धा। सुखावें। संमर्दितोऽयं क्रिमिकालकूटः इन्हें धनिये और जीर के चूर्ण के अनुपान For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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