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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कर्षो रसो गन्धकमभ्रमं च द्विक्षारचित्र लवणानि पञ्च । शीवानीद्वयकी हारि तालीशपत्राणि परं विषं च ॥ www.kobatirth.org सब चीज़ोंका चूर्ण समान भाग । अभ्रक भस्म सबसे २ गुनी । शुद्ध भांग सबसे चौथाई और इन सबसे २ गुनी खांड मिलाकर शहद और घीके साथ मोदक बनावें । मात्रा २ माशेसे ४ माशे तक। [७५४] कामाग्निसंदीपनो मोदकः ( यो. र. वाज़ी . ) ककारादि-गुटिका कामानिसंदीपनमेनमाहुः | वृष्यं तथा परतरं सततं सदीप्य जीरं चतुर्जातलवङ्गजाती.. फलं च कर्षत्रयमेवमन्यत् । सुवृद्धदारं कटुकत्रयं च तथा चतुष्कर्षमिदं निबोध | धान्याकयष्टीमधुकं कसेरु फलं पृथकपञ्चपलं विदारी दन्ती कणा चातिबलात्मगुप्ता बीजं तथा गोक्षुरकस्य बीजम् ॥ सबीजपूरेन्द्ररजः समानं समा सिता क्षौद्रयुतं च तुल्यम् । कर्षैकमिन्दोरथमोदकं च मेनं निषेव्य मनुजः प्रमदासहस्रम् । गच्छेन्न लिंग शिथिलत्वमेव नागाधिपं विजयते बलतः प्रमत्तः ॥ वातानशीतिमथ पित्तभवांश्च रोगान् श्लेष्मोत्थविंशतिरुजः परमाग्निमान्द्यम् । * वरी बिदारी। बलेभकर्णभबलात्मगुप्ताफलं तथेति पाठान्तरम् । * घृतश्चेति वा पाठाः । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २२७ ) दुर्वारकामलभगंदरपाण्डुरोगान् मेहातिसार कृमिहृद्ग्रहणीविकारान् ॥ कासज्वरश्वसनयक्ष्मकफप्रतिश्याय शूलामवातसहिताश्च रुजः समस्ताः । हत्वा गदान्बहुविधांस्तदपत्यकारी सर्वत्रपथ्यमथ सर्वसुखप्रदायी ॥ बल्यं वलीपलितहारी रसायनं स्यान्मूलं तदेव कथितं परमं पवित्रम् ॥ शुद्ध पारा, शुद्ध गन्धक, अभ्रक भस्म, जवाखार, सज्जीखार, चीता, पांचों नमक, कपूरकचरी, अजवायन, अजमोद, बायबिडंग, तालीसपत्र, शुद्ध मीठा तेलिया, जीरा, दालचीनी, इलायची, तेजपात, नागकेसर, लौंग और जायफल प्रत्येक ११ - १। तोला । विधारा और त्रिकुटा ३ ||| - ३|| तोला, धनिया, मुल्हैठी और कसेरू प्रत्येक ५-५ तोला, विदारीकन्द, दन्ती, पीपल, गंगेरन, कौंच के बीज और गोखरू प्रत्येक २५ - २५ तोला, विजौरा और इन्द्रजौ का चूर्ण सबके बराबर । खांड और शहद प्रत्येक सब चूर्णके बराबर । कपूरका चूर्ण १। तोला लेकर यथाविधि मोदक बनावें । यह मोदक अत्यन्त कामवर्द्धक और वृष्य हैं। इसे अजवायन चूर्णके साथ सेवन करने से अत्यन्त संभोगशक्ति प्राप्त होती है । For Private And Personal Use Only यह ८० प्रकारके वातज रोग, पित्तजरोग, २० प्रकारके कफज रोग, अत्यन्त अग्निमांद्य, दुस्साध्य कामला, भगंदर, पांडु, प्रमेह, अतिसार, कृमि, हृद्रोग, ग्रहणी विकार, खांसी, ज्वर, श्वास, राजयक्ष्मा, कफज प्रतिश्याय [जुकाम) शूल और आमवात आदि अनेक रोगनाशक, सन्तानोत्पादक, सर्वत्र पथ्य, सुखदायी, बल्य, बली पलित नाशक एवं रसायन है ।
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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