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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org एकारादि-रस ( १९५ ) । 1 मोथा, भूरिछरीला, दोनों प्रकार के शारिवे । प्रत्येक वस्तु ५ - ५ तोला । मजीठ, इन्द्रयव, दन्ती, गिलोय, हल्दी, दारूहल्दी, रास्ना, खस, मुल्हैठी, सिरस, खैर, अर्जुन, चिरायता, नीम, चीता, कूट और साफ़ । प्रत्येक वस्तु ५०-५० तोले लेकर सबको २५६ सेर जल में पकावें । जब ३२ सेर पानी शेष रह जाय तो छानकर उसमें नीचे लिखी चीजें मिलाकर यथा विधि सन्धान करके एक मास तक रक्खा रहने दें। धायके फूल १ सेर, शहद ३७॥ सेर, दालचीनी, तेजपात, नागकेसर, इलायची, त्रिकुटा, चन्दन, लाल चन्दन, मुरामांसी, जटामांसी, नागर [ ५८४ ] एलादिलेप: (च. सं । चि. ७ अ.) एला कुष्ठन्दार्वी शतपुष्पा चित्रकं विडङ्गश्च । कुष्ठे लेपनमिष्टश्च रसाञ्जनश्चाभया चैव ॥ अथ एकारादि लेपप्रकरणम् एक मास पश्चात् निकालकर छानकर सुरक्षित रक्खें 1 [५८५] एकांगवीररसः (वृ. नि. र. वा. व्या.) शुद्धगन्धं मृतं सूतं कतिं वंगं च नागकम् । ताम्रं चाभ्रं मृतं तीक्ष्णं नागरं मरिचं कणा ॥ सर्वमेकत्र संचूर्ण्य भावयेन्च पृथक् व्यहम् । वराण्योषक निर्गुण्डीवह्निशुद्धाद्रकस्य रसैस्तथा ॥ सांगवीरोऽसौ सिद्धो रसराड् भवेत् । पक्षघातं चार्दितं च धनुर्वातं तथैव च ॥ अर्द्धांगं गृधसीं वापि विश्वाचीमपबाहुकम् । सर्वान्वातामयान्हन्ति सत्यं सत्यं न संशयः ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उसको सेवन करने से विसर्प, मसूरिका, रोमान्तिका, शीतपित्त, विस्फोटक (फोड़े), विषमज्वर, नाड़ी व्रण ( नासूर ) दुष्टव्रण, दारुण खांसी और श्वास, भगन्दर, उपदंश एवं प्रमेह पिडिका का नाश होता है। अथ एकारादि रसप्रकरणम् । इलायची, कुठ, दारूहल्दी, सोया, चीता, बायबिडंग, रसौत और हैड़ । इनका लेप करनेसे का नाश होता है । शुद्ध गन्धक, रस सिन्दूर, कान्त लोह भस्म, बंग भस्म, सीसा भस्म, ताम्र भस्म, अभ्रक भस्म, तीक्ष्ण लोह भस्म, सोंठ, मरिच, पीपल । सब समान भाग लेकर चूर्ण करके उसे त्रिफला, त्रिकुटा, संभालु, चीता, अद्रक, सैंजना, कूट, आमला, कुचला, आक, धतूरा और अद्रक के रसमें, यथा क्रम ३ - ३ भावना दें । इसके सेवन से पक्षाघात, अर्दित, धनुर्वात, अर्द्धांग, गृध्रसी, विश्वाची, अपवाहुक आदि समस्त वातज रोगों का नाश होता है । For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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