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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org एकारादि-तैल अथ एकारादि तैलप्रकरणम् । [ ५७५] एरण्डतैलयोगः (३) (वृ. नि. र. वा. व्या) एरण्डतैलेन गुडूचिकायाः [ ५७३] एरण्डतैलयोगः (१) (वृ. नि. र., ब. से., वा. व्या.) तैलमेरण्डजं प्रातर्गोमूत्रेण पिवेन्नरः । मासमेकं प्रयोगोऽयं गृध्रस्यूरुग्रहापहः ॥ एक मास तक गोमूत्र में अरण्ड का तेल डाल कर प्रातःकाल पीने से गृध्रसी और ऊरुग्रह का नाश होता है। [ ५७४] एरण्डतैलयोगः (२) (बृ. नि. र. वा. व्या.) वाजिगन्धा बला विश्वा दशमूलं विसाधितम् गृध्रस्य तैलमैरंडं बस्तौ पाने च शस्यते ॥ । सी के लिये एरण्ड के तैल को असगंध, खरैटी, सोंठ और दशमूल के क्वाथ तथा कल्क से सिद्ध करके पीना चाहिये एवं इसी की बस्ती भी लेनी चाहिये । काथोऽथ वा वर्द्धितपिप्पली वा । गुडेन पथ्याखिलवातरक्तं विनाशयेत्पध्ययुतस्य पुंसः ॥ अण्डी के तेल के साथ गिलोय का क्वाथ या वर्द्धमान पिप्पली अथवा गुड़युक्त हैड़ सेवन करने और पथ्य पालन करने से सब प्रकार का वातरक्त नष्ट होता है । [५७६] एरण्डतैलयोगः (४) (वृ. नि. र. अण्डवृ.) तैलमैरण्डजं पीत्वा बलासिद्धपयोन्वितम् । आध्मान शूलोपचितामन्त्र वृद्धिं जयेनरः ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only ( १९३ ) खरैटीसे यथाविधि दूध पकाकर उसके साथ अण्डीका तैल पान करनेसे अफारा और शूलयुक्त अन्त्र वृद्धिका नाश होता है । [५७७] एरण्डतैलहरीतकी (१) (भा. प्र., ब. से; आ, वा) एरण्डतैलयुक्तां हरीतकीं भक्षयेन्नरो विधिवत् । आमानिलार्तियुक्तो गृध्रसीवृद्ध्यर्दितो नियतम् ॥ एरण्ड तैलके साथ यथा विधि हैड़ सेवन करनेसे आमवात, गृध्रसी और वृद्धि रोगका नाश होता है । [५७८] एरण्डतैल हरीतकी (२) (बृ. नि र. इली ) गंधर्वतैलभृष्टां हरीतकीं गोजलेन यः पिबति । श्लीपदबंधनमुक्तो भवत्यसौ सप्तरात्रेण ॥ अरण्ड तैलमें भूनी हुई हरड़ोंको ७ दिन तक गोमूत्र के साथ पीने से श्लीपद (हाथी पग ) का नाश होता है। [५७९] एरण्डतैलादियोगः (१) (यो. . र. गुल्म.) पिवेदेरण्डतैलं वा वारुणीमण्डमिश्रितम् । तदेव तैलं पयसा वातगुल्मी पिवेन्नरः ॥ वारुणी नामक मद्य या दूध के साथ अरण्डका तैल पीनेसे वातज गुल्मका नाश होता है । [ ५८० ] एरण्डतैलादियोगः (२) ( यो. र. । कुरं. चि., ग, नि. । वृद्धय . ) एरण्डतैलसंमिश्र कासीस सैन्धवं पिबेत् । वस्त्रेण वृषणं बद्धं कुरण्डज्वरनाशनम् ॥ अण्ड वृद्धिसे उत्पन्न हुवे ज्वरकी शान्तिके लिये अरण्डके तेलमें कसीस और सेंधा नमक
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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