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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१४२) भारत-भैषज्य रत्नाकर - अथ आकारादि रसायनानि ज्ञातव्य जिस औषधि से जरा, व्याधि का नाश हो कर आयु, बल, ओज, मेधा आदि की वृद्धि होती है एवं युवावस्था तथा आयु स्थिर रहती है उसे रसायन कहते हैं। चरक सुश्रतादि प्राचीन ग्रन्थों में कितने ही दिव्य रसायन प्रयोगों की इतनी प्रशंसा मिलती है कि जिसे देखकर आश्चर्य होता है एवं बहुत सम्भव है कि कितने ही सज्जन उसे गप्प से अधिक महत्व देने के लिये तैयार न हों परन्तु गहरी दृष्टि से देखा जाय तो तनिक भी असम्भव प्रतीत नहीं होगा। प्रथम तो प्राचीन काल में मनुष्यों के शरीर स्वभावतः ही अत्यधिक बलवीर्यवान और पुष्ट होते थे आयु दीर्घ होती थी, दूसर उनके आचार व्यवहार शुद्ध और पवित्र होते थे एवं वह लोग योग तपादि के अभ्यासी होते थे, धैर्य पूर्वक बहुत समय तक कठिन से कठिन नियमों का पालन कर सकते थे, इसके सिवाय उस समय औषधियां भी अधिक प्रभावशाली होती थी अतएव उस समय इन रसायन प्रयोगों से यथोक्त गुण प्राप्त होना कुछ आश्चर्य की बात नहीं थी परन्तु आज कल जब कि औषधियां प्रभाव हीन हो गई हैं ( स्वयं महर्षि चरकने भी इस बात को स्वीकार किया है), शरीर निर्बल हो गए हैं, जप, तप, योगादि का नाम नहीं, ब्रह्मचर्याश्रम का निशान नहीं, आचार, व्यवहार और नियमादि पालन हो नहीं सकते ऐसी अवस्था में वह गुण प्राप्त होना अवश्य असम्भब है। हां, यदि नियमों का पालन करते हुए विधि पूर्वक रसायन औषधियों का प्रयोग किया जाय तो परिस्थिति के अनुसार न्यूनाधिक लाभ अवश्य हो सकता है। रसायन प्रयोग दो प्रकार के होते हैं (१) कुटिप्रावेशिक । (२) वातातपिक । विस्तार भयके कारण यहां इनका वर्णन नहीं किया गया अतएव जो सजन रसायन प्रयोगों से अधिक लाभ उठाना चाहें उन्हें चरकादि ग्रन्थों में वर्णित पूरा २ वर्णन देखकर यथाशक्ति नियमों का पालन करते हुए प्रयोग करने चाहिये। [४११] आमलकी रसायनम् (१) मात्रा पौर्वाहिका प्रयोगः । सात्म्यापेक्षः (च. सं. चि. अ. १) चाहारविधिना पराज्ञिकस्तस्य प्रयोगाद आमलकसहस्रं पिप्पलीसहस्रसंप्रयुक्तं प- शतमजरं वयस्तिष्ठतीति समानं पूर्वेण ॥ लाशतरुक्षारोदकोत्तरं तिष्ठे तदनुगतक्षार । १ हजार नग आमले और १ हज़ार पिप्पमनातपशुष्कमनस्थिचूर्णीकृतचतुर्गुणा- लियों को ढाकके * क्षारजल (क्षारके पानी) में भ्यां मधुसपिा संनीय शर्करा चूर्णाचतु *क्षारा त् षडगुणं जलं दवा वस्त्रेण दोलायन्त्रं भागसम्प्रयुक्त वृतमाजनस्थ पामासान् स्थाविधाय तदधः पात्रं पातयित्वा क्षारोदकं ग्राह्यम्। पयेदन्तर्भूमेस्वस्योचरकालमग्निवलसमा 'एवं एकविंशतिवारं पुनः पुनः नापयित्वा प्रायम्॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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