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________________ Shri Mahavir Jain A n dra Acharya Shi r agarsuri Gyanmandir व्याख्याप्राप्तिः ॥११४६॥ १तके उद्देशः२ ११४६॥ CSSICA www.kobirth.org |माणा पन्नत्ता, ते णं भंते किं संखेजवित्थडा असंखेजवित्थडा, गोयमा संखेजवित्थडे य असंखेजवित्थडा य, पंचसु णं भंते ! अणुत्तरविमाणेसु संखेजवित्थडे विमाणे एगसमएणं केवतिया अणुत्तरोववाइया देवा उवव० !, केवतिया सुक्कलेस्सा उवव०१, पुच्छा, तहेय गोयमा! पंचसुण अणुत्तरविमाणेसु संखेजविस्थडे अणुत्तरविमाणे एगसमएणं जह० एको वा दो वा तिन्नि वा उक्कोसेणं संखेजा अणुत्तरोववाइया देवा उववजति एवं जहा गेवेजविमाणेमु संखेज्जवित्थडेसु, नवरं किण्हपक्खिया अभवसिद्धिया तिसु अन्नाणेसु एए न उववज्जति न चयति न पन्नत्तएसु भाणियब्वा, अचरिमावि खोडिजति जाव संखेजा चरिमा पं० सेस तं, असंखेजवित्थडेसुवि एएन| भन्नंति, नवरं अचरिमा अत्थि, सेस जहा गेवेन्जएमु असंखेज्जवित्थडेसु जाव असंखेज्ला अचरिमा प० । [म०] हे भगवन् ! आनत अने प्राणत देवलोकने विषे केटला शत (सेंकडो) विमानाचासो कहेला छे ? [उ०] हे गौतम ! चारसो विमानावासो कहेला छे. [प्र.] हे भगवन् ! ते विमानावासो शु संख्याता योजनविस्तारवाळा हे के असंख्यातायोजनविस्तारवाळा छ ? [उ०] हे गौतम ! संख्याता योजन विस्तारवाळा पण छे अने असंख्यातयोजनविस्तारवाळा पण छे. ए प्रमाणे संख्यातायोजनविस्तारवाळा विमानावासो विषेत्रण आलापको सहस्रार देवलोकनी पेठे कहेवा. असंख्यात योजनविस्तारवाळा विमानोने विषे उत्पाद अने च्यवन संबन्धे ए प्रमाणे 'संख्याता' ज कहेवां; सत्तामा असंख्याता कडेवा; परन्तु एटलो विशेष छे के नोइंद्रिय-मनना उपयोगवाळा, अनन्तरोपपन्नक, अनन्तरावगाढ, अनंतराहारक अने अनंतरपर्याप्ता-ए पांच पदने विणे जघन्यथकी एक, वे के त्रण अने उत्कृष्टी संख्याता उपजे, अने सत्तामा असंख्याता होय-एम कहेवु. जेम आनत अने प्राणतने विषे का, ARREARSAEKARAN For Private And Personal
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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