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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandit C4% बाल्याप्रदक्षिः ॥११४५॥ 655AA कहे, बाकी धुं पूर्व प्रमाणे जाणवू. असंख्यातायोजनविस्तारवाळा विमानावासोमा एप्रमाणे त्रण आलापको कहेवा, परन्तु पटलो | विशेष के के ए त्रणे आलापकोमा 'असंख्याता' एवो पाठ कहेवो. अवधिज्ञानी अने अवधिदर्शनी संख्याता च्यवे छे. [ केमके 3१३शतके तीर्थकरादिक अवधिन्नान अने अवधिदर्शन सहित च्यवे अने ते संख्याता होय.] बाकी बर्षा पूर्व प्रमाणे जाणवं. ए प्रमाणे जेम ना उद्देशा का॥११४५॥ सौधर्म देवलोकनी वक्तव्यता कही, तेम ईशान देवलोकने विषे [त्रण संख्याताना अने त्रण असंख्याताना] ए प्रमाणे छ आलापको | कहेवा. सनत्कुमारने विषे पण एमज जाणवू, परन्तु एटलो विशेष के के अहिं स्त्रीवेदवाळा उत्पन्न थता नथी, तेम सत्तामा पण होता नथी. त्रणे आलापकोने विषे असंज्ञी न कहेवा. [ कारण के अहिं मंझीथी आवी उपजे छे अने संज्ञीने विष जाय . ] बाकीजें वर्षा पूर्व प्रमाणे जाणवु. ए प्रमाणे यावत्-सहस्रार देवलोक सुधी जाणवू, परन्तु विमानो अने लेश्याओमां विशेष छे. बाकी बर्षा पूर्वनी पेठे जाणवु. आणयपाणयेसु णं भंते ! कप्पेसु केवतिया विमाणावाससया पणत्ता?, गोयमा! चत्तारि विमाणावाससया |पण्णत्ता, ते ण भंते। किं संखेज असंखेज०, गोयमा! संखेजवित्थ० असंखेजवि० एवं संखेजवित्थडेसु तिन्नि गमगाजहा सहस्सारे असंखेजविस्थडे० उववजंतेसु यचयंतेसु य एवं चेव संखेजाभाणियव्वा, पन्नत्तेसु असंखेजा, नवरं नोइंदियोवउत्ता अणतरोववन्नगा अणतरोगाढगा अणतगहारगा अर्णतरपजत्तगा य एएसिं जहन्नेणं एको वा दो वा तिन्नि वा उक्कोसेणं संखेजा पं० सेमा असंखेज्जा भाणियब्बा। आरणच्चुएसु एवं चेव जहा आणयपाणएतु, नाणत विमाणेसु, पवं गेवेजगावि । कति णं भंते! अणुत्तरविमाणा पन्नत्ता?, गोयमा! पंच अणुत्तरवि For Private And Personal
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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