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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्ति ॥११२२॥ IRH १२शतके उद्देशा१. ११२२॥ www.kobatirth.org देसे आदितु तदुभयपज्जवे चउप्पएसिए खंधे आया य नो आया य अवत्तव्वं आयाति य नो आयाति य, देसे आदि सम्भावपज्जवे देसे आदिढे असम्भावपज्जवे देसा आदिहा तदुभयपजवा चउप्पएसिए खंधे भवह आया य नो आया य अवत्तव्बाई आयाओ य नो आमाओ य १७ देसे आदितु मम्भावपजवे देसा आदिट्ठा असम्भावपजवा देसे आदितु तदुभयपज्जवे चउप्पएसिए खंधे आया य नो आयाओ य अवसव्वं आयाति य नो आया ति य १७ देसा आइट्ठा सम्भावपज्जया देसे आहढे असम्भावप० देसे आइहे तदुभयपज्जवे चउप्पणसिए खंधे आयाओ य नोआया य अवत्तव्वं आयाति य नो आयाति य १९ से तेणटेणं गोयमा! एवं वुच्चइ चउप्पएसिए खंघे सिय आया सिय नो आया सिय अवत्तब्वं निक्खेवे ते चेव भंगा उच्चारेयवा जाव नो आयाति य ॥ | [प्र.] हे भगवन् ! शा हेतुथी एम कहेवाय छे के चतुःप्रदेशिक स्कन्ध कथंचित् आत्मा, नोआत्मा अने अवक्तव्य ले-इत्यादि पूर्व प्रमाणे अर्थनो पुनरुच्चार करी प्रश्न करवो. [उ.] हे गौतम ! १ पोताना आदेशथी स्वरूपनी विवक्षाथी आत्मा छ, २ परना आदेशथी पररूपनी विवक्षाथी नोआत्मा छ, ३ तदुभयना आदेशथी आत्मा अने नोआत्मा ए उभयरूपे अवक्तव्य छ, ४ देशना आदेशथी सद्भावपर्यायनी अपेक्षाए अने देशना आदेशथी असद्भावपर्यायनी अपेक्षाए [ एकवचन अने बहुवचनना ] चार मांगा | थाय छ, सद्भावपर्याय अने तदुभयनी अपेक्षाए चार भांगा थाय छे. तथा असद्भाव अने तदुभयनी अपेक्षाए पण चार भांगा थाय छे, तथा १६ देशना आदेशथी सद्भावपर्यायनी अपेक्षाए देशना आदेशथी असद्भावपर्यायनी अपेक्षाए अने देशना आदेशथी तदुभयपर्यायनी अपेक्षाए चतुष्पदेशिक स्कंध आत्मा, नोआत्मा अने आत्मा तथा नोआत्मा-ए उभयरूपे अवक्तव्य छ, १७ देशना For Private And Personal
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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