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________________ Shri Mahavir Jain Ar व्याख्या ॥११२०॥ 10 e ndra ___www.kebatrth.org Acharya Shri f regarsuri Gyanmandir र्यायनी अपेक्षाए त्रिप्रदेशिक स्कंध आत्माओ अने नोआत्मारूप छ, ७ देशना आदेशथी सद्भावपर्यायनी अपेक्षाए अने देशना आदेशयी उभय-सनाव तथा असद्भाव पर्यायनी अपेक्षाए ते त्रिप्रदेशिकस्कंध आत्मा अने आत्मा तथा नोआत्मा-ए उभयरूपे १२शतके उद्देश:१० अवतन्य छ, ८ देशना आदेशथी सद्भावपर्यायनी अपेक्षाए अने देशोना आदेशथी उभयपर्यायनी विवक्षाए ते त्रिप्रदेशिक स्कंध म॥११२०॥ आत्मा अने आत्माओ तथा नोआत्माओ-ए उभयरूपे अबक्तव्यो छे, ९ देशोना आदेशथी सद्भावपर्यायनी अपेक्षाए अने देशना है आदेशथी तदुभयपर्यायनी अपेक्षाए ते त्रिप्रदेशिक स्कंध आत्माओ अने आत्मा तथा नोआत्मा ए उभयरूपे अवक्तव्य के-ए त्रण भांगाओ जाणवा. १० देशना आदेशथी असद्भावपर्यायनी अपेक्षाए अने देशना आदेशथी उभयपर्यायनी अपेक्षाए. ते त्रिप्रदेशिक । स्कंध नोआस्मा अने आत्मा तथा नोआत्मा रूपे अवक्तव्य छ, ११ देशना आदेशथी असद्भावपर्याय नी अपेक्षाए अने देशोना आदेशथी तदुभयपर्यायनी अपेक्षाए ते त्रिप्रदेशिक स्कंध नोआत्मा अने आत्माओ तथा नोआत्मा-ए उभयरूपे अवक्तव्यो के, १२ देशोना आदेशथी असद्भावपर्यायनी अपेक्षाए अने देशना आदेशथी तदुभयपर्यायनी अपेक्षाए ते त्रिप्रदेशिक स्कंध नोआत्मओ अने आत्मा तथा नोआत्मा उभयरूपे अवक्तव्य छ, १३ देशना आदेशथी सद्भावपर्यायनी अपेक्षाए, देशना आदेशथी असद्भावपर्यायनी अपेक्षाए अने देशना आदेशथी तदुभयपर्यायनी अपेक्षाए ते त्रिप्रदेशिक स्कंध (कथंचिद् ) आत्मा, नोआत्मा अने आत्मा तथा नोआत्मा उभयरूपे अवक्तव्य . माटे हे गौतम! ते हेतुथी एम का छे के त्रिप्रदेशिक स्कंध कथंचिद्-आत्मा के-इत्यादि याव द्-नो आत्मा के-'त्यां सुघी बधुं कहे. न आया भंते ! चउप्पएसिए खंधे अन्ने पुच्छा, गोयमा! चउप्पएसिए खंधे सिय आया १ सिय नो आया २ ASHOKHRASACREASE For Private And Personal
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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