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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रज्ञप्तिः ४१३७९ ।। www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir वास (सय) सहस्सेण वा नो वबयंति जावतियं चउत्थभत्तिए, एवं तं देव पुष्वभणियं उच्चारेयव्वं जाव वासको | डाकोडीए वा नो स्ववयंति ?, गोयमा । से जहानामए- केह पुरिसे जुने जराजजरियदेहे सिढिलत याव लितरंगसंपिणद्धगत्ते पविरल परिसडियदंतसेवी उण्हामिहए तण्हामिहर आउरे झुंझिए पिवासिए दुब्बले किलते एवं महं कोसंथगंडियं सुकं जडिलं गंठिल्लं चिकणं वाइद्धं अपत्तियं मुंडेपा परसुणा अवकमेज्जा, तर णं से पुरिसे महंताई २ सहाई करेइ नो महंताई २ दलाई अवद्दालेह, एवामेव गोयमा ! नेरइयाणं पावाई कम्माई गाढीकाई चिकणीकचाई एवं जहा छट्टसए जाव नो महापावसाणा भवंति से जहानामए केई पुरिसे अहिकरण आउडेमाणे महया जाय तो महापज्जबसाणा भवंति से जहानामए केई पुरिसे तरुणे बलवं जाव मेहावी निउणलिप्पोषगए एगं महं सामलिगंडियं उल्लं भजडिलं अगंठिलं अभिकर्ण अवाहद्धं मपत्ति तिषखेण परसुणा अक्षमेला, तर णं से पुरिसे नो महंताई २ सहाई करेति महंताई २ दलाई अवदालेति, एवामेव गोयमा ! समणाणं निग्गंधाणं अहाबादराई कम्माई सिटिलीकयाइं मिट्टियाई कथाई जाव विप्पामेव परिविद्धत्याएं भवंति जावतियं तावतियं | जाव महापज्जवसाणा भवंति से जहा वा केइ पुरिसे सुकतणहत्थगं जायतेयंसि पक्लिवेला एवं जहा छसए तहा अयोकवल्लेवि जाब महाप० भवंति से तेणद्वेणं गोपमा ! एवं बुबा जावतियं अनइलायए समणे निांचे कम्मं निज्जरेति तं चैव जाव वासकोडाकोडीए वा नो वबयंति ॥ 'सेवं भंते ! सेवं भंते 'ति जाब बिहरह (सूत्रं ५७३ ) ।। १६-४ ॥ For Private And Personal १६ शतके उद्देशः४ ॥१३७९ ॥
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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