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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir व्याख्या । प्रज्ञप्तिः ॥१३७८॥ GANGOCHARACA* निग्गंथे कम्मं निजरेति एवतिय कम्मं नरएसुनेरहया वाससहस्सेण वा वाससहस्सेहिं वा वाससयसहस्सेण(हिं) या ववयंति ?, णो तिणडे समढे, जाबतियन भंते ! अट्ठमभत्तिए समणे निग्गंथे कम्मं निलरेति एवतियं कम्म १६ इतके है नरएसु नेरतिया वाससयसहस्सेण वा वाससयसहस्सेहिं या वासकोडीए(हिं) वा स्वयंति', नो तिणढे समहे | Pउरेशा [म०] राजगृहमां यावत् आ प्रमाणे बोल्या के-हे भगवन् ! अन्नग्लायक (अम विना ग्लान थएलो-नित्यमोजी) श्रमण ५॥२३७८ | निथ जेटलं कर्म खपावे तेटलं कर्म नैरयिक जीवो नरकमां एक वरसे, अनेक वरसे के सो वरसे खपावे। [उ०] हे गौतम ! ए अर्थ समर्थ-यथार्थ नथी. [म.] हे भगवन् । चतुर्थभक्त (एक उपवास) करनार श्रमण निथ जेटलं कर्म खपावे तेटलं कर्म नैरयिक जीबो नरकमा सो बरसे, अनेक सो बरसे के हजार वरसे सपावे? (उ.] हे गौतम! ए अर्थ समर्थ नथी [प्र०] हे भगवन् ! छनुभक्त (खे उपवास) करी श्रमण निग्रंथ जेटलु कर्म खपावे वेटलुं कर्म नैरयिको नरकमा एक हजार वरसे, अनेक हजार बरसे के | एक लाख वरसे खपावे? [उ०] हे गौतम! ए अर्थ समर्थ नथी. [म.] हे भगवन् ! अष्टम भक्त (त्रण उपचास ) करी श्रमणनिथ जेटलुं कर्म खपावे तेटलं कर्म नैरयिको नरकमा एक लाख वरसे, अनंक लाख बरसे के एक क्रोड वरसे खपावे ? [उ.] हे गौतम ! ए अर्थ समर्थ नथी. जावतियन्नं भंते ! दसमभत्तिए समणे निग्गंथे कम्मं निजरेति एवतियं कम्मं नरएसु नेरतिया वासकोडीए वा वासकोडीहिं वा वासकोडाकोडीए चा स्वयंति, नो तिणढे समढे, से केणष्टेण भंते! एवं बुचा जावतियं अन्नदलातए समणे निग्गंथे कम्म निजरेति एवतियं कम्मं नरएसुनेरतिया वासेण वा वासेंहिं वा वाससएण वा(जाब) For Private And Personal
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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