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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥ १४११ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir उत्तरेणं छोडिसए तहेब जाब चत्तालीसं जोघणसहस्साई ओगाहिता एस्थ णं बलिस्स बहरोपणिस्स वइरोयणरन्नो बलिचचा नाम रामहाणी पन्नता एवं जोपणलय सहस्सं पमाणं तहेब जाव बलिपेढस्स उववाओ जाव आपरक्खा सच्वं तहेव निरवसेमं नवरं सातिरेगं सागरोवमं ठितीं पन्नत्ता सेसं तं चेत्र जाव वली वइरोयणिदे बली २ || सेवं भंते । २ जाव विहरति ॥ (सूत्रं ५८८ ) ।। १६-९ ॥ [प्र० ] हे भगवन् ! वैरोचनेन्द्र अने वैरोचन राजा एवा बलिनी सुधर्मा ममा क्या कहेली (आवेली छे ? [३०] हे गौतम! जंबूद्वीप नामे द्वीपमां मंदर पर्वतनी उत्तरे तिरछु असंखेय (द्वीप-समुद्रो ओळंगीने) --इत्यादि जेम चमरनी हकीकतमां कं छे तेम अरुणवर दीपनी बाह्यवेदिकाथी अरुणवर समुद्रमां बैंतालीस हजार योजन अवगाह्या पछी चैरोचनेन्द्र अने वैरोचनराजा एवा बलिनो रुचकेंद्र नामनो उत्पात पर्वत को ले. ते उत्पात पर्वत १७२१ योजन उंचो छे. बाकीनुं बधुं तेनुं प्रमाण तिगिच्छिकूट पर्वतनी पेठे जाणत्रं तेना प्रासादावतंसकतुं पण प्रमाण तेज प्रमाणे जाणधुं तथा बलिना परिवार साधे सपरिवार सिंहासन पण ते प्रमाणे कहेवु. रुचकेन्द्र नामनो अर्थ पण ते प्रमाणे कहेवो. विशेष ए के अहिं रुचकेन्द्र (रत्नविशेष) नी प्रभावाळां उत्पलादि जाणवां. बाकी धुं तेज प्रमाणे यावत्-ते बलिचंचा राजधानीतु तथा अन्योनुं (आधिपत्य करतो विहरे वे.) त्यांसुधी कहेवु. ते रुचकेन्द्र उत्पात पर्वतनी उत्तरे छ सो (पंचावन क्रोड, पांत्रीश लाख, पचास हजार योजन अरुणोदय समुद्रमां तिरछु जइने नीचे रत्नप्रभा पृथ्वीमां) इत्यादि पूर्ववत् यावत् चालीस हजार योजन गया पछी त्यां वैरोचनेन्द्र बैरोचनराजा एवा बलिनी 'बलिचंचा' नामनी राजधानी कही (आवेली) छे. ते राजधानीनो विष्कंभ- विस्तार एक लाख योजन के, बाकीनुं वधुं प्रमाण पूर्व प्रमाणे जाणवु, अने ते यावत् For Private And Personal १६ शतके उद्देशः ९ ॥ १४११ ॥
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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