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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥१४१० ।। www.kobatirth.org संकोचवा के पसारा समर्थ के ? [अ०] हे गौतम ! ते अर्थ समर्थ नथी. [प्र० ] हे भगवन् ! आप ए प्रमाणे या हेतुथी कहो छो के ' मोटी ऋद्धिवाळो देव लोकान्मां रहीने अलोकमां पोताना हाथने, यावत् - उरुने पसारखा समर्थ नथी' [उ०] हे गौतम 1 जीवोने (अनुगत एवा) आहारोपचित, शरीरोपचित अने कलेबरोपचित पुद्गलो होय छे, तथा पुद्गलोने आश्रयीनेज जीवोनो अने अजीवोनो (पुद्गलोनो) गतिपर्याय कहेवाय के. अलोकमां तो जीवो नथी, तेम पुद्गलो पण नथी माटे ते हेतुथी पूर्वोक्त देव यावत्पसारखा समर्थ नथी. 'हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज छे. ' ॥ ५८७ ॥ भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीसूत्रना १६ मा शतक्रम आठमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ܊ For Private And Personal शतक १६. (उद्देशक ९.) कहिनं भंते! बलिस्म बहरोपणिदस्स बहरोयणरन्नो सभा सुहम्मा पन्नता ? गोयमा ! जंबुहीवे दीवे मंदररस पव्वयस्स उत्तरेणं तिरियमसंखेजे जहेव चमरस्स जाव बापालीसं जोषण सहस्साई ओगाहित्ता एत्थ णं बलि|स्स वइरोयदिस्स वह० २ रुपगिंदे नामं उपायपत्र पन्नत्ते सत्तरस एकवीसे जोयणसए एवं पमाणं जहेब तिगिच्छकूडस्स पासायवाडेंसगस्सवि तं चैव पमाणं सीहासणं सपरिवारं बलिस्स परियारेणं अट्ठो तहेव नवरं fiभाई ३ सेसं तं चैव जाव बलिचंचाए रायहाणीए अन्नेसिं च जाव रुपगिंदस्स णं उत्पायपव्वयस्स १६ के उमेशः९ ॥ १४१०॥
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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