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अने अंतरद्वीपज मनुष्य तथा तिर्यचोथी आवी धर्मदेवो उत्पन्न न थाय. (अर्थात्-ए सिवाय बाकीना स्थानथी आवी धर्मदेव थाय.) व्याख्याप्रशतिः
[प्र.] हे भगवन् ! देवाधिदेवो क्याथी आवी उत्पन्न थाय-शुं नैरयिकोथी आवी उत्पन्न थाय-इत्यादि प्रश्न. [उ.] हे गौतम ! १२शतके ॥११०३ नैरयिकोथी आवी उत्पन्न थाय छ, तिर्यच अने मनुष्योथी आवी उत्यन्न थता नथी. पण देवो थकी आवीने उत्पन्न थाय ने.[प्र.]
पाउद्देशः९ जो नैरयिकोथी आवी (देवाधिदेव) उत्पन्न थाय (तो शु रत्नप्रभाना नैरयिकथी आवी उत्पन्न थाय) इत्यादि प्रश्न. [उ.] ए प्रमाणे
2॥११०३॥ प्रथम त्रण पृथिवीथी आवी (देवाधिदेव) उत्पन्न थाय ले. बाकीनी पृथिवीओनो प्रतिषेध करवो. (प्र०) जो तेओ देवोथी आवी
उत्पन्न थाय तो शुं भवनपति वगेरेथी आवी उत्पन्न थाय ? (उ०) सर्व वैमानिक देवोथी, यावत्-सर्वाथसिद्धथी आवी उत्पन्न हाथाय. बाकीना देवोनो निषेध करवो. (प्र०) हे भगवन् ! भावदेवो क्याथी आवी उत्पन्न थाय ? (उ०) जेम व्युत्क्रांतिपदमां भवन| वासिओनो उपपात कह्यो के तेम अहीं कहेवो. ॥४६२ ॥
भवियदव्वदेवाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पण्णता?, गोयमा! जहन्नणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं तिन्नि पलिओबमाइं, नरदेवाणं पुच्छा गोयमा! जहन्नेणं सत्त वासमयाइं उक्कोसेणं चउरासीई पुव्वसयसहस्साई, धम्मदेवाणं भंते ! पुच्छा, गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्त उन्कोसेणं देसूणा पुवकोडी, देवाधिदेवाणं पुच्छा गोयमा! जहन्नेणं बावत्तरि वासाई उक्कोसेण चउरासीइं पुवमयसहस्साई, भावदेवाणं पुच्छा गोयमा! जहन्नेणं दस वास सहस्साई उक्कोसेणं तेत्तीस सगरोवमाई ।। (सूत्रं ४६३)॥
(प्र०) हे भगवन् भव्यद्रव्यदेवोनी केटला काळ सुधी स्थिति कही छे ? (उ०) हे गौतम ! तेओनी ओछामा ओछी अन्त
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