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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandi व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥१०८६॥ ASIES [प्र.] हे भगवन् ! शा हेतुथी सूर्यने आदित्य (आदिमां थयेलो) एम कहेवाय छे ? [उ०] हे गौतम ! समयो, आवलिकाओ, यावत्-उत्सर्पिणीओ अने अवसर्पिणीओना आदिभूत कारण सूर्य छे, माटे आदित्य-आदिमां थनार कहेवाय छे. (अर्थात् अहोरा ₹१२वतके उद्देश: त्रादिक कालना समय-आवलिका अने मुहूर्तादि भेदो सूर्यनी अपेक्षाए थाय छे, माटे सूर्यने अहोरात्रादि कालनो आदिभूत होवाथी १०८६॥ आदित्य कहेवाय छे.) ॥ ४५५।। चंदस्स णं भंते ! जोइसिंदस्स जोइसरन्नो कति अग्गहिसीओ पण्णत्ताओ जहा दसमसा जाव णो चेव णं मेहुणवत्तियं । सूरस्सवि तहेव । चंदमसूरिया णं भंते ! जोइसिंदा जोइसरायाणो केरिसए कामभोगे पञ्चणुब्भबमाणा विहरंति?, गोयमा! से जहानामए केइ पुरिसे पढमजोव्वणुट्ठाणबलत्थे पढमजोव्वणुट्ठाणबलट्ठाए भारियाए सद्धिं अचिरवत्तविवाहकजे अत्थगवेसणयाए सोलसवामविप्पवासिए से णं तओ लद्धट्टे कयकजे अणहसमग्गे पुणरवि नियगगिहं हव्वमागए कयबलिकम्मे कयकोउयमंगलपायपिछत्ते सव्वालंकारविभूसिए मणुन्नं थालिपागमुद्धं अट्ठारसवंजणाकुलं भोयग भुत्ते समाणे तंसि तारिसगंसि वासघरंसि वन्नओ महब्बले कुमारे जाब सयणोवयारक लिए ताप तारिसियाए भारियाए सिंगारागारचारुवेमाए जाव कलियाए अणुरत्ताए अविरताए मणाणुकूलाए सद्धिं इढे सद्दे फरिसे जाव पंचविहे माणुस्मए कामभोगे पचणुब्भवमाणे विहरति, सेणं गोयमा ! पुरिसे विउसमणकालसमयंसि केरिस सायासोक्ख पञ्चणुब्भवमाणो विहरति ?, ओरालं समणाउसो तस्स ण गोयमा ! पुरिसस्स कामभोगेहिंतो वाणमंतराणं देवाणं अणतगुणविसिट्टत्तराए चेव कामभोगा, वाणमं HIKARANGACASS For Private And Personal
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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