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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandie ॥१०८५॥ आच्छादित थाय छे अने बाकीना समये चंद्र रक्त-अंशथी आच्छादित अने विरक्त-अंशथी अनाच्छादित होय छे. शुक्लपक्षना प्रति-|| व्याख्या पदथी आरंभी (प्रतिदिवस) तेज चंद्रनी लेश्याना पंदरमा भागने देखाडतो ३ रहे है. ते आ प्रमाणे-पडवाने विषे पहेला भागने १२शतके प्रज्ञप्तिः पडू देखाडे छे, यावत् पूर्णिमाने विषे पंदरमा भागने देखाडे ले, शुक्लपक्षना छेवटना समये चन्द्र विरक्त-राहुथी सर्वथा मुक्त होय के उद्देशः६ अने बाकीना समये चन्द्र रक्त-आच्छादित अने विरक्त अनाच्छादित होय छे. तेमा जे पर्वराहु छे ते ओछामा ओछा छ मासे १०८५॥ (चंद्रने के सूर्यने) ढांके छे. अने वधारेमांवधारे बेताळीश मासे चंद्रने अने वधारेमां वधारे अडताळीश वरसे मूर्यने ढांके छे.॥४५३॥ ४ा से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-चंदे ससी २१, गोयमा! चंदस्म णं जोइसिंदस्स जोइसरन्नो मियंके विमाणे *कंता देवी कंताओ देवीओ कंताई आमणसयणखंभभंडमत्तोवगरणाई अप्पणोऽवि य णं चंदे जोइसिंदे जोइमराया सोमे कंते सुभए पियदसणे सुरूवे से तेण?ण जाव ससी ॥ ( सूत्रं ४५४ )। हा [प्र०] हे भगवन् ! शा हेतुथी चन्द्रने 'ससी' सश्री-ए प्रमाणे कहेवाय छे ? [उ०) हे गौतम ! ज्योतिष्कना इंद्र अने ज्योति कना राजा चंद्रना मृगांक (मृगना चिह्नवाळा) विमानमा मनोहर देवो, मनोहर देवीओ, मनोहर आसन, शयन, स्तंभ तथा सुंदर पात्र वगेरे उपकरणो छ, तथा ज्योतिष्कनो राजा अने ज्योतिषिक इंद्र चंद्र पोते पण सौम्य, कांत, सुभग, प्रियदर्शन अने मुरूप छे, ते माटे चंद्र ससी-सश्री-शोभासहित कहेवाय छे. ॥ ४५४ ।। से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-सूरे० आइच्चे सूरे २१, गोयमा! सूरादिया णं समयाइ वा आवलियाह वा जाव उस्सप्पिणीइ वा अवमप्पिणीइ वा से तेणद्वेण जाव आइच्चे०२॥ (सूत्रं ४५५)॥ CASSES Fer Private And Personal
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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