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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandit १४चवके उदेका ॥१२१०० लय अविग्गहगहसमावनगा य, विग्गहगइसमावन्नए जद्देव नेरइए जाव नो खलु तस्थ सत्थं कमह, अविग्गहगहव्याख्या समावनगा पंचिंदियतिरिक्खजोणिया दुविहा पन्नत्ता, तंजहा-इडिप्पत्ता य अणिपिपत्ता य, तत्थ णं जे से ॥१२२७NDIपत पाचोदया ६ इडिप्पत्ते पंचिंदियतिरिक्खजोणिए से णं अस्थेगहए अगणिकायस्स मझमज्झेण वीयीवएजा अत्थेगइए नो बी | यीवएज्जा, जेणं बीयीवएना से गं तत्थ झियाएजा, नो तिण? समहे, नो खलु तत्थ सस्थं कमद, तस्थ णं जे PIसे अणिप्पित्ते पंचिंदियतिरिक्वजोणिए से ण अत्धेगतिए अगणिकायस्स मज्झमझेणं वीयीवएज्जा अत्थेगBातिए नो वीइवएना, जेणे वीपीवएज्जा से णं तत्थ झियाएज्जा, हंता झियाएज्जा, से तेणद्वेणं जाव नो वीयीच. एज्जा, एवं मणुस्सेवि, वाणमंतरजोइसियवेमाणिए जहा असुरकृमारे ।। ( सूत्रं ५.५)॥ [प्र.] हे भगवन् ! पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव अग्निनी बच्चे थईने जाय ?-ए प्रश्न. [उ०) हे गौतम ! कोइ एक जाय अने 31 कोई एक न जाय. [म.] हे भगवन् ! ए प्रमाणे आप भा हेतुथी कहो छो के कोई एक जाय अने कोइ एक न जाय' ? [उ०] हे गौतम ! पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिको वे प्रकारना कया छे, ते आ प्रमाणे-विग्रहगतिने प्राप्त थयेला अने अविग्रहगतिने प्राप्त धयेला. तेमा जे विग्रहगतिने प्राप्त थयेला पंचेन्द्रियतियचयोनिको छे ते नैरयिकनी पेठे जाणवा, यावत्-'तेने शस्त्र असर करतुं नथी.' जे पंचेन्द्रियतिर्यचो अविग्रहमतिने प्राप्त थयेला छे ते वे प्रकाराना कमा छ, ते आ प्रमाणे-ऋद्धिप्राप्त (वैक्रियलब्धियुक्त) अने ऋद्धिने 2 अप्राप्त (वैक्रियलधिरहित ), तेमां जे पंचेन्द्रियतियचो ऋद्धिने प्राप्त थयेला के, तेमांथी कोई एक अग्निनी बचे थइने जाय अने कोइ एक अग्निनी बच्चे थईने न जाय. [H०] जे अग्निनी बचे थईने जाय छे ते स्यां बळे? [उ०] ए अर्थ समर्थ-यथार्थ नथी, | For Private And Personal
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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