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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir बाकयाप्राप्ति ॥१२२२॥ १ Pउमेश G॥१२१॥ पूर्वे करण-प्रयोगकरण भने विस्रसाकरणथी अनेक वर्णवाळा अने (अनेक गन्ध, रम, स्पर्व अने संस्थानना मेदथी) अनेकरूपवाळा परिणामरूपे परिणत थयो हतो? (परमाणुनो भिन्न भिन्न समये अनेक वर्णादिरूपे परिणाम थाय छे, अने स्कन्धनो एकसमये अनेक वर्णादिरूपे परिणाम थाय छे.) हवे ते अनेकवर्णादिपरिणाम क्षीण थाय त्यार पछी ते पुद्गल एकवर्णवाळो अने एकरूपवाळो हतो? [उ.] हा गौतम ! आ पुद्गल अतीतकालने विषे-इत्यादि यावत्-' एकरूपवाळो हतो'-त्यां सुधी समग्र पाठ कहेवो. [प्र.] हे भगवन् ! आ पुद्गल (परमाणु के स्कन्ध) शाश्वत वर्तमान काळने विषे (एक ममय सुधी रूक्षस्पर्शवाळो, स्निग्धस्पर्शवाळो, तथा स्निग्ध अने रूक्ष-चन्ने स्पर्शवाळो होय ? अने प्रयोग अने विनसाथी अनेक वर्णादिरूपे परिणत थाय ? ते परिणामना क्षीण थया बाद एकवर्णवाळो अने एकरूपवाळो होय?) [उ०] पूर्वप्रमाणे उत्तर जाणवो. ए प्रमाणे अनागतकाल संबन्धे पण जाणवू. [१०] हे भगवन् ! अनन्त-अपरिमित अने शाश्वत अतीतकालने विषे पुद्गलस्कन्ध (एक समय सुधी रूक्षस्पर्शवाळो, स्निग्धस्पर्शवाळो तथा स्निग्ध अने रूक्ष-प बन्ने स्पर्शवालो हतो? अने अनेकवर्ण अने अनेकरूपवाला परिणामरूपे परिणत थ्यो हतो? पछी ते परिणामना क्षीण थवाथी तेनो एकवर्णवाळो अने एकरूपवाळो परिणाम थयो हतो?) [उ.] ए प्रमाणे जेम पुद्गलसंवन्धे कडं तेम स्कन्धसंबन्धे पण जाणवू. ।। ५१०॥ - एस भंते ! जीवे तीतमणतं मासयं समयं दुग्बी समयं अदुक्खी समयं दुक्खी वा अदुक्खी वा? पुचि च करणेणं अणेगभूगं परिणाम परिणमइ अह से वेगणिजे निजिन्न भवति तओ पच्छा एगभावे एगभूप सिया?, हंता गोयमा! एम जीवे जाव एगभूप सिया, एवं पटुप्पन्नं मासयं समयं, एवं अणागयमणं सामयं समर्थ ॥ For Private And Personal
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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