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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir SHA व्याख्या प्राशि ॥१२११॥ जाणवं. एरीते यावत्-वेदनापरिणामने पण अनुमवे -इत्यादि जेम जीवाभिगमसूत्रना बीजा नैरयिक उद्देशकमां का छे ते प्रमाणे अहिं कहे. यावत्-प्र०] हे भगवन् ! सातमी नरकपृथिवीना नैरयिको केवा प्रकारमा परिग्रहसंज्ञापरिणामने अनुभवे छे? [उ.] हे गौतम ! तेओ अनिष्ट, यावत्-मनने नहि गमतापरिग्रहसंज्ञापरिणामनो अनुभव करता विहरे छे, 'हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज छे'-एम कही (भगवन् गौतम) यावद् विहरे के. ।। ५.९॥ भगवत सुधर्मखामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीस्त्रना १४ मा शतकमां वीजा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. १४शतके उदेश ॥४२२१॥ उद्देशक ४. एस णं भंते ! पोग्गले तीतमणतं सासयं समयं लुक्खी समयं अलुक्खी समयं लुक्खी वा अलुक्खी वा! पुदि च णं करणेणं अणेगवन्नं अणेगरूवं परिणाम परिणमति, अह से परिणामे निजिन्ने भवति तओ पच्छा एगवन्ने एगरूवे सिया?, हंता गोयमा! एस णं पोग्गले तीते तं चेव जाब एगरूवे सिया ॥ एस णं भंते ! पोग्गले पड़प्पन्नं सासयं समयं, एवं क्षेत्र, एवं अगागयमणतंपि ॥ एम णं भंते ! खंधे तीतमणत !, एवं चेत्र स्वधेवि जहा पोग्गले ।। ( सूत्रं ५१.)॥ म.] हे भगवन् ! आ पुदगल (परमाणु के स्कन्ध) अनन्त-अपरिमित अने शाश्वत अतीतकाळने विषे एक समय सुधी रुक्षसे स्पर्शवाळो, एक समय सुपी अरुक्ष-स्निग्धस्पर्शवाळो, तथा एक समय सुधी रुक्ष अने स्निग्ध-पन्ने प्रकारना स्पर्शवाळो हतो? अने ANAKARA%A-SAKAL BAD For Private And Personal
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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