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________________ Shri Mahavir Jain Astres fra Acharya Shri K a rsuri Gyanmandit पाच्या प्राप्ति उचा ॥११७२ www.kobatirth.org [म०] हे भगवन् ! केटला तेजःकायिक जीवो रहेला होय ! [उ.] के गौतम ! असंख्याता रहेला होय. [प्र.] हे भगवन् ! केटला वायुकायिक जीवो रहेला होय ! [उ०] हे गौतम! असंख्याता रहेला होय. [4] केटला बनस्पतिकायिको रहेला होय. [उ.] अनन्ता वनस्पतिकायिको रहेला होय. [प्र०] हे भगवन ! ज्यां एक अकायिक रहेलो होय त्यां केटला पृथिवीकायिक जीवो रहेला होय ? [उ.] हे गौतम! असंख्याता रहेला होय. [प्र.] केटला अकायिको रहेला होय ? [उ.] असंख्याता रहेला होय.९ प्रमाणे जेम पृथिवीकायिकनी वक्तव्यता कही, तेम सर्वनी सघळी वक्तव्यता यावत्-वनस्पतिकाय सुधी कहेवी. यावत्-[प्र.] केटला वनस्पतिकायिको रहेला होय ? [3.] अनन्ता रहेला होय. ॥ ४८४ ॥ एसिणं भंते ! धम्मस्थिकाय. अधम्मत्थिकाय. आगामस्थिकायंसि चकिया केई आमहत्तए वा चिट्टित्सए वा निसीइत्तए वा तुयद्वित्ता वा?, नो इण समढे, अणंता पुण तत्थ जीवा ओगाढा, से केणद्वेणं भंते ! एवं वुबह-एतसिणं धम्मस्थि: जाव आगासत्थिकायंसि णो चक्किया केई आसत्तए वा जाव ओगाढा , गोयमा से जहानामा कडागारसाला सिया दुहओ लिसा गुत्ता गुत्तदुवारा जहा रायप्पसेणाइजेजाव दुवारवयणाई पिहेद दु.२ तीसे कूडागारमालाए बहुमज्झदेसभाए जहन्नण एको वा दोवा तिन्नि वा उकोसेणं पदीवसहस्सं पलीवेजा, से नूण गोयमा ताओ पदीवलेस्साओ अन्नमन्नसंबद्धाओ अन्नमनपुट्ठाओ जाच अन्नमनघडत्ताए चिट्ठति ।.हंता चिटुंति, चकिया ण गोयमा! केई तासु पदीवलेस्सासु आसइत्तए वा जाव तुपट्टित्तए वा?, भगवं! जो तिणढे समढे, अणंता पुण तत्य जीवा ओगाढा, से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं बुञ्चइ जाव ओगाढा (सूत्रं ४८५) For Private And Personal
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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