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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandit १३वतके उमेश RWA BRUARKSAROKA ला होय. [प्र०] केटला आकाशास्तिकायना प्रदेशो रहेला होय ? [उ०] असंख्याता प्रदेशो रहेला होय. [प्र.] केटला जीवास्तिकायना प्रदेशो होय ? [उ.] अनन्ता होय, ए प्रमाणे यावत्-अद्धासमय सुधी जाणव, [प्र०] हे भगवन् ! ज्यां एक अधर्मास्तिकाय अबमाढ-रहेलो होय त्यां केटला धर्मास्तिकायना प्रदेशो रहेला होय ? [उ.] असंख्याता प्रदेशो रहेला होय. [प्र.] केटला अधर्मास्तिकायना प्रदेशो रहेला होय ! [उ.] एक पण प्रदेश न होय. बाकी (आकाशास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय अने अद्धासमयने) धर्मास्तिकायनी पेठे जाणवू. सर्व धर्मास्तिकायादि द्रव्यने 'खस्थानके एक पण प्रदेश नथी-ए प्रमाणे कडेवू, अने परस्थानके आदिना त्रण द्रव्यने (धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय अने आकाशास्तिकायने ) 'असंख्याता' कहेवा, अने पाछळना त्रण द्रव्यने 'अनन्ता' यावत्-अद्धासमय सुधी कदेवा. यावत्-[प्र०] केटला अद्धासमय अवगाढ होय ? [उ.] एक पण नथी. ॥ ४८३ ।। जत्थ णं भंते! एगे पुढविकाइए ओगाढे तस्थ णं केवतिया पुढ विकाइया ओगाढा?, असंखेजा, केवतिया आउकाइया ओगाढा?, असंखेना, केवड्या तेउकाइया ओगाढा?, असंखेजा, केवइया वाउ० ओगाढा ?, असंखेजा, केवतिया वणस्सइकाइया ओगाढा ?, अणंता, जत्थ णं भंते ! एगे आउकाइए ओगाढे तत्थ णं केवतिया पुढवि. असंखेजा, केवतिया आउ. असंखेजा, एवं जहेव पुढविकाइयाणं वत्तव्वता तहेव सब्वेसि निरवसेसं भाणियब्वं जाब वणस्मइकाइयाणं जाव केवतिया वणस्सहकाइया ओगाढा?, अणंना ।। ( सूत्रं ४८४)॥ [प्र०] हे भगवन् ! ज्यां एक पृथिवीकायिक जीव अवगाढ होय त्यां बीजा केटला पृथिवीकायिक जीवो रहेला होय! [उ.] असंख्याता पृथिवीकायिको रहेला होय. [प्र०] केटला अष्कायिक जीवो अबगाढ होय? [उ०] असंख्याता जीवो अवगाढ होय ? R For Private And Personal
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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