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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥५९८॥ का वैमानिकदेवपंचेन्द्रियक्रियशरीरकायप्रयोगपरिणत होय के अपर्याप्मसर्वार्थसिद्धवैक्रियकायप्रयोगपरिणत होय. [प्र०] हे भगवन् ! जो ते एक द्रव्य वक्रियमिश्चशरीरकापप्रयोगपरिणत होय तो शुं एकेन्द्रियवैक्रियमिश्रशरीरकायप्रयोगपरिणत होय के यावत् पंचेन्द्रिय ८ शतके क्रियमिश्रशरीरकायप्रयोगपरिणत होय ? [उ०] हे गौतम ! जेम वैक्रियशरीरप्रोगसंबन्धे का, तेम वैक्रियमिश्रकायप्रयोगसंबन्धे * उद्देशः१ | पण कडेवू; परन्तु विशेष ए छे के वैक्रियमिश्रकायप्रयोग देव अने नरयिक अपर्याप्ताने अने बाकीना बधा पर्याप्ताने कहेबो; यावत् | ॥५९८॥ पर्याप्तसर्वार्थसिद्धअनुत्तरौपपातिकवैक्रियमिश्रकायप्रयोगपरिणत न होय, पण अपर्याप्त सर्वार्थसिद्धअनुत्तरौपपातिकदेवपंचेन्द्रियवेक्रियमिश्रशरीरकायप्रयोगपरिणत होय. (४.) [प्र०] हे भगवन् ! जो ते एक द्रव्य आहारकशरीरकायप्रयोगपरिणत होय तो शु मनुष्याहारकशरीरकायप्रयोगपरिणत होय के अमनुष्याहारकका यप्रयोगपरिणत होय ? [उ०] हे गौतम! ए प्रमाणे जेम प्रज्ञापनासूत्रना 'अवगाहनासंस्थान' पदने विषे का छे तेम जाण यावत् ऋद्धिमाप्त-आहारकलब्धिमान् प्रमत्त साधु सम्यग्दृष्टि पर्याप्त संख्येयवर्षायुषवाळा मनुष्याहारककायप्रयोगपरिणत होय, पण ऋद्धिने-आहारकलब्धिने-अप्राप्त प्रमत्त संयत सम्यग्दृष्टि संख्यातवर्षायुषवाला मनुष्याहारककायप्रयोगपरिणत न होप. (५.) जइ आहारगमीसासरीरकायप्पयोगप किंमणुस्साहारगमीसासरीर एवं जहा आहारगं तहेव मीसगंपि निरवसेसं भाणियब्वं ६।जइ कम्मासरीरकायप्पओगपकिंगिदियकम्मासरीरकायप्पओगप० जाव पंचिंदियकम्मासरीर जाव प०१, गोयमा ! एगिदियकम्मासरीरकायप्पओ० एवं जहा ओगाहणसंठाणे कम्मगस्स भेदो तहेव इहावित जाव पज्जत्तसव्वट्ठसिद्धअणुत्तरोववाइय जाव देवपांचंदियकम्मासरीरकायप्पयोगपरिणए अपजत्तसव्वट्ठसिद्ध RAHARHARMA नट For Private and Personal Use Only
SR No.020108
Book TitleBhagvati Sutram Part 03
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1938
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size12 MB
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