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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir P८ शतके प्रज्ञप्तिः उद्देशः१ ॥५९७॥ गोयमा ! बाउक्काइयएगिदिय जाव परिणए. नो अवाउक्काइय जाव परिणए, एवं एएणं अभिलावेणं व्याख्या- जहा ओगाहणसंठाणे वेउब्वियसरीरं भणिय तहा इहवि भाणिवव्वं जाव पज्जत्तसव्वट्ठसिद्ध अणुत्त रोववातियकप्पातीयवेमाणियदेवपंचिंदियवेउब्वियसरीरकायप्पओगपरिणए वा अपज्जत्तसव्वदृसिद्ध० काय॥५९७॥ प्पयोगपरिणए वा ३ । जइ वेउब्वियमीसासरीरकायप्पयोगपरिणए कि एगिदियमीसासरीरकायप्प ओगपरिणए वा जाव पंचिंदियमीसासरीरकायप्पयोग परिणए वा ?, एवं जहा वेउब्वियं तहा वेउब्बियमीसगंपि, नवरं देवनेरइयाणं अपज्जत्तगाणं, सेसाणं पजत्तगाणं तहेव जाव नो पजत्तसव्वट्ठसि अणुत्तरो जाव पओग०,अपजत्तसव्वट्ठसिद्धअणुत्तरोववातियदेवपंचिंदियवेउब्वियमीसामरीरकायप्पओगपरिणए ४ । जइ आहारगसरीरकायप्पओगपरिणए किं मणुस्साहारगसरीरकायप्पओगपरिणए अमणुस्साहार ग जाव प०?, एवं जहा ओगाहणसंठाणे जाव इढिपत्त अपमत्तसंजयसम्मबिडिपजत्तगसंखेजवामाउय जाव परि &ाणए, नो अणिढिपत्तअपमत्तसंजयसम्महिट्टि पजत्तसंखेजवासाउय जाव प० । | [प्र०] हे भगवन् ! जो ते एक द्रव्य एकेन्द्रियवैक्रियकायप्रयोगपरिणत होय तो शुं वायुकायिकएकेन्द्रियवैक्रियकायप्रयोगपरिणत माहोय के वायुकायिक शिवाय एकेन्द्रियकायप्रयोगपरिणत होय ? [उ०] हे गौतम! ते एक द्रव्य वायुकायिकएकेन्द्रियकायप्रयोगपट्रारिणत होय, पण वायुकायिक शिवाय एकेन्द्रियकायप्रयोगपरिणत न होय. ए प्रमाणे ए अभिलाप (पाठ) थी प्रज्ञापना सूत्रना 'अवगाहनासंस्थान' पदने विषे वैक्रियशरीरसंबन्धे कडुं छे तेम अहीं पण कहे; यावत् पर्याप्तसर्वार्थसिद्धअनुत्तरौपपातिककल्पातीत % -% For Private and Personal Use Only
SR No.020108
Book TitleBhagvati Sutram Part 03
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1938
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size12 MB
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