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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥३६३ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वीरेणं मणसा चैव पुट्टेणं मणसा चेव इमं एयारूवं वागरणं वागरिया समाणा समणं भगवं महावीरं वंदामो नमसामो २ जाव पज्जुवासामो तिकट्टु भगवं गोतमं वंदंति नमसंति २ जामेव दिसिं पाउ० तामेव दिसिं प० ॥ ( सूत्रं १८८ ) ॥ त्यापछी श्रमण भगवंत महावीर तरफथी एवा प्रकारनी अनुमति मळवाने लीधे भगवान् गौतमे श्रमण भगवंतने वांदी, नभी | अने जे तरफ पेला देवो हता ते तरफ जवाने संकल्प कर्यो, हवे ते देवो भगवान् गौतमने पोतानी पासे आवता जोड़ने हर्षवाळा यावत् हृतहृदयवाळा थया अने शीघ्रज उभा थड़ तेओनी सामे गया-ते देवो, ज्यां भगवान् गौतम हता ज्यां आव्या-अने तेओने वांदी, नमी ते देवोए आ प्रमाणे कां:-हे भगवन् ! महाशुक नामना कल्पथी, महास (रू) र्ग विमानथी मोटी ऋद्धिवाळा यावत्-अमे वे देवो अहीं प्रादुर्भूत थया छीए अने (पछी) अमे श्रमण भगवंत महावीरने वांदीए छीए नमीए छीए अने मनथीज आ प्रकारना प्रश्नो पूछीए छीए- 'हे भगवन् ! आप देवानुप्रियना केटला सो शिष्य सिद्ध थशे यावत् सर्व दुःखनो नाश करशे ?' आ रीते अमे श्रमण भगवंत महावीरने मनश्री पूछया पछी अमने पण ते श्रमण भगवंत महावीरे मनथीज तेनो जवाब आप्यो के - 'हे देवानुप्रियो ! मारा सातसे शिष्यो सिद्ध थशे यावत् सर्व दुःखोनो नाश करशे ' ए रीते अमे मनथीज पूळेल प्रश्नोना जवाब पण अमने श्रमण भगवंत महावीर तरफथी मन द्वाराज मळ्या तेथी अमे श्रमण भगवंत महावीरने बांदीए छीए, नमीए छीए अने यावत्- तेओनी पर्युपासना करीए छीए, एम करीने ( कहींनं) ते देवो भगवान् गौतमने वांदे छे, नमे छे अने पछी तेओ जे दिशामांथी प्रगट्या हता तेज दिशामां अंतर्धान पड़ गया. ।। १८८ ॥ For Private and Personal Use Only ५ शतके उद्देशः ४ ।।३६३।।
SR No.020107
Book TitleBhagvati Sutram Part 02
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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