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५ शतके | उद्देशः२ ॥३४६॥
य जे दवे दव्वे एएणं पुब्वभावपन्नवणं पडुच्च आउजीवसरीरा, तओ पच्छा सत्यातीया जाव अगणिकायसरीध्याख्या
राति बत्तव्वं सिया। अहन्नं भंते ! अए तंवे तउए सीसए उवले कसहिया एए णं किंसरीराइ वत्तव्वं सिया, प्रज्ञप्तिः
गोयमा ! अए तंबे तउए सीसए उवले कसहिया, एए णं पुष्वभावपन्नवणं पडुच्च पुढविजीवसरीरा, तओ पच्छा ॥३४६॥ I सत्यातीया जाव अगणिजीवसरीराति बत्तब्वं सिया।
[प्र०] हे भगवन् ! ओदन, कुल्माष अने मदिरा, ए त्रणे द्रव्यो क्या जीवनां शरीरो कहेवाय ? [उ०] हे गौतम ! ओदन, कुलमाष अने मदिरामां जे धन (कठण) पदार्थ छे ते पूर्वभाव प्रज्ञापनानी अपेक्षाए वनस्पति जीवनां शरीरो छे. अने ज्यारे ते | ओदन वगेरे द्रव्यो (खाणीया वगेरे) शस्त्रोथी कूटाय छे, शस्त्रोथी परिणमित-नवा आकारनां धारक-याय के अने अग्निथी तेना वर्णी (रंगो) बदलाय छे, अग्निथी झूषित-पूर्वना स्वभावने छोडनारां थाय छे, अग्निथी नवा आकारनां धारक बने छे त्यारे ते द्रव्यो | अग्निनां शरीरो कहेवाय छे, तथा सुरा (मदिरा) मा जे प्रवाही पदार्थ छे ते पूर्वभाव प्रज्ञापनानी अपेक्षाए पाणीना जीवनां शरीरो
के अने ज्यारे ते प्रवाही भाग शस्त्रथी कूटाय छे यावत्-अग्निथी जुदा रंगने धारण करे छे त्यारे ते भाग, अग्निकायनां शरीरो छे | एम कहेवाय छे. [प्र०] हे भगवन् ! लोढुं, तांबु, त्रपु-कलाइ, सीसुं, बळेलो पत्थर-कोयलो अने कसट्टिका-काट, ए बधां द्रव्यो |कया जीवनां शरीरो कहेवाय ? [उ.] हे गौतम ! लोहूं, तांबू, कलाइ, सीसुं कोयलो अने काट, ए बधां पूर्व भाव प्रज्ञापनानी अपेक्षाए पृथिवीना जीवनां शरीरो कहेवाय अने पछी-शस्त्र द्वारा कूटाया पछी-यावत्-अग्निना जीवनां शरीरो कहेवाय.
अहण्णं भंते ! अट्ठी अहिज्झामे चम्मे चम्मज्झामे रोमे २ सिंगे २ खुरे २ नखे २ एते णं किंसरीराति वत्त
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