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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | लिपि बंगाळी मरोडनी अने छपाइ आजनी पद्धतिमर तेमज आद्यमुद्रण आदि कारणो नहिं होवाथी तेनो जैनजनता ज्ञाननी तृषा शांत करवा संपूर्ण लाभ लइ शक्की नहि, छतां तेओश्रीना प्रयास माटे तेमनो अत्रे आभार मानवो अस्थाने नहिं गणाय. त्यारपछी आ कार्य माटे जैनाचार्य श्रीमत् सागरानंदमूरीश्वरजीना सदुपदेशधी आगमोदयसमिति नामनी संस्था महेसाणानिवासि धन्यनाम शाह वेणिभाइ सुरचंदद्वारा स्थापित करावी तेमां मुद्रणना बहोळा खर्च माटे आश्रयदाताओनी आर्थिक सहायता मेळवी पोतानी जातमहेनतथी केटलीक प्रेसकोपी तैयार करावी प्रुफ संशोधन करी ते आगमो टीका सहित निर्णयसागर जेवा प्रेसमा मुद्रित करावी जैनशासननी उन्नति माटे न वर्णवी शकाय तेवो प्रयास करी पोतानी आगमोद्धारकनी पदवीने खरेखर दीपाची छे. त्यारबाद ते सूत्रोना भाषांतरो थवा लाग्या जेमां अमारा तरफथी आचारांगसूत्र, उत्तराध्ययन, दशवैकालिक वगेरे सूत्रोना अनुवादो प्रसिद्ध थया के तेमां आज आ श्रीमद्भगवतीमूत्रना अनुवादरूपे प्रथम भागनो वधारो थाय छे. आ भगवती जेवा महान् सूत्रनो अनुवाद छापी प्रसिद्ध करवानुं साहस अमारी शक्तिबहार हतुं. परंतु अत्रे संवत् १९९२ मां आगमोद्धारक पूज्यपाद सागरानंदसूरीश्वरजीनुं चातुर्मास अहीं (जामनगरमां) थयुं ते अरसामां तेओश्री तरफथी भगवतीसूत्र शासनधुरंबर अभयदेवसूरीश्वरजीनी टीका माथे पुनर्मुद्रण करवा माटे अमारा प्रेसने सौंप्यं. जेथी मने पत्राकारे भगवतीसूत्र भाषांतर साथै मुद्रित धाय तो ठीक एषो विचार रहेज उद्भन्यो, कारणके मूल सूत्रना पाठो तो तेओश्रीना हस्तथी संशोधन करेला काम लागसे एम धारी ते लेवानी तेओश्रीनी आज्ञा मागी. जो के सूत्रना भाषांतरो माटे तेमनी अनिच्छा छतां गये ते रस्ते ज्ञानमो For Private and Personal Use Only
SR No.020106
Book TitleBhagvati Sutram Part 01
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages330
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size8 MB
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