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प्रज्ञप्तिः
| ३ शतके उद्देशः२ ॥२६८॥
॥२६८॥
असुरकुमार देवोनो नीचे जवानो विषय शीघ, शीघ्र तथा त्वरित होय छे अने उंचे जवानो विषय अल्प, अल्प तथा मंद, मंद होय २. वैमानिक देवोनो उंचे जवानो विषय शीघ्र, शीघ्र तथा त्वरित,त्वरित होय छे अने नीचे जवानो विषय अल्प, अल्प तथा मंद, मंद | होय छे-एक समयमा देवेंद्र, देवराज शक्र, जेटलो भाग उपर जइ शके छ तेटलंज उपर जवाने क्जने के समय लागे छे अने तेटलुंज उपर जवाने चमरने ऋण समय लागे छे अर्थात् देवेंद्र, देवराज शक्रनुं उघलोककंडक उंचे जवाने थतुं काळमान-सौथी थोई| के अने अधोलोककंडक तेना करतां संख्येयगणुं छे. एक समयमा असुरेंद्र, अमुरराज चमर, जेटलो भाग नीचे जइ शके छे तेटलुज नीचे जवाने शक्रने बे समय लागे छे अने तेटलुं नीचे जवाने वजूने त्रण समय लागे छ अर्थात् असुरेंद्र, असुरराज चमरनुं
अधोलोककंडक सौथी थोडं छे अने उर्ध्वलोककंडक तेना करता संख्येय गणु छे. हे गौतम ! ए कारणने लइने देवेंद्र, देवराज शक्र हा पोताना हाथे असुरेंद्र, असुरराज चमरने पकडया समर्थ न नीवडयो.
सकस्स ण भंते ! देविंदस्स देवरन्नो उड्ढे अहे तिरियं च गतिविसयस्स कयरेशहितो अप्पे वा बहुए वा तुल्ले है वा विसेसाहिए वा!, गोयमा! सब्बत्यो खेत्तं सके देविदे देवराया अहे ओवयह एकेण समएणं, तिरियं संखज्जे | भागे गच्छह, उड्ढं संखजे भागे गच्छद। चमरस्सणंभंते ! असुरिंदस्स असुररन्नो उड्दं अहे तिरियं च गतिवि|सयस्स कयरे रहिंतो अप्पे वा बहुए वा तुल्ले वा विसे साहिए वा!, गोयमा! सव्वत्थोवं खेत्तं चमरे असुरिदे असुरराया उड्दं उप्प यति एक्केणं समएणं, तिरियं संखेने भागे गच्छइ, अहे संखेजे भागे गच्छद, वजं जहा सकस्स देविंदस्स तहेव नवरं विसेसाहियं कायवं । सक्कस्स णं भंते ! देविंदस्स देवरन्नो ओवयणकालस्स य
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