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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥१६३।। अने बीजी पण हकीकत के. [40] हे भगवन् ! शुं सर्व जीवो उपपन्नपूर्व छे ! अर्थात् शुंबधा जीवो रत्नप्रभा पृथिवीनां त्रीशलाख नरकोमा आवी गएला छे ? [उ.] हे गौतम ! हा, अनेकवार अथषा अनंतबार बधा जीवो रत्नप्रभा पृथिवीना त्रीशलाख नरकोमा २ शतके आवी गया छे. पृथिवी उद्देशो कहेवो. ॥१७॥ उद्देशः२ भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद्भगवतीमत्रना बीजा शतकमा श्रीजाउद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. ||१६३॥ उद्देशक कति ण भंते ! इंदिया पन्नत्ता!, गोयमा! पंचिंदिया पन्नत्ता, तंजहा-पदमिल्लो इंदियउद्देसो नेयम्वो, संठाणं बाहुल्ल पोहत्तं जाव अलोगो (सू०९८)। बीयसए इंदियउद्देसो चउत्थो ॥२-४ ॥ [प्र०] हे भगवन् ! केटली इंद्रियो कही छ ? [उ.] हे गौतम ! पांच इंद्रियो कही छे. ते आ प्रमाणे स्पर्श वगेरे. अहीं प्रज्ञापनामत्रमा कहेलो इंद्रिय संबंधी उद्देशक कहेवो. तथा तेमां कह्या प्रमाणे इंद्रियनो घाट, जाडाइ, अने पहोळाइ पण कहेवी तथा अलोक सुधीना विवेचनवाळो आखो इंद्रिय उद्देशक कहेवो. ॥ ९८॥ भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद्भगवतीमत्रना बीजा शतकमां चोथा उद्देशानो मृलार्थ संपूर्ण थयो. उद्देशक ५. अण्णउत्थियाण भंते! एवमाइक्खंति भासंति पन्नति परवेंति, तंजहा-एवं खलु नियंठे कालगए समाणे | For Private and Personal Use Only
SR No.020106
Book TitleBhagvati Sutram Part 01
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages330
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size8 MB
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